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सम्राट भोज परमार : समीक्षा

समीक्ष्य पुस्तक :  सम्राट भोज परमार
लेखक : विजय नाहर
प्रकाशक : गोविन्द प्रकाशन, जयपुर
प्रकाशन वर्ष : 2016
संस्करण : प्रथम
आईएसबीएन-978-93-84622-19-0
मूल्य : 300 Rs

10वीं-11वीं सदी के सांस्कृतिक गौरव सम्राट भोज परमार का तथ्यों सहित वर्णन करती विजय नाहर की पुस्तक समीक्षा

महान विद्वान वीलहण ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ "विक्रमांकदेव चरित" में सम्राट भोज परमार के विषय में लिखा है "भोजक्षमामृत स खलु न खलैस्तस्य साम्यम नरेन्द्रे:" अर्थात भोज के समान कोई दूसरा राजा नहीं था। इसी प्रकार पाश्चात्य ब्यूलर ने सम्राट भोज की प्रशंसा करते हुए लिखा है, "He deserved the title 'KAVIRAJA' as he had written books on many subject" जैसा कि सम्राट उदयादित्य ने उदयपुर प्रसास्ति में उत्कीर्ण "भोज कविराज था"।

ऐसी संपूर्ण जानकारियों को प्रकट करने वाला ग्रंथ 'सम्राट भोज परमार' इतिहासकार विजय नाहर ने लिखकर अनेक अनछुए घटनाक्रमों को समाज के समक्ष रखा है। इस ग्रंथ में 950 ईस्वी से 1100 ईस्वी तक के भारतीय इतिहास को सँजोया गया है। यही वह कालखंड था जब गजनी के तुर्क मुस्लिम सुल्तान महमूद ग़ज़नवी का भारत पर आक्रमण हुआ था। लेखक ने अपने इस ग्रंथ की संपूर्ण सामग्री को 14 अध्यायों में सँजोया है जिनमें प्रारंभिक पाँच अध्यायों में परमार वंश की उत्पत्ति, शाखाएँ एवं भोज के पूर्व शासकों का इतिवृत चार अध्यायों में भोज के पश्चात के शासकों का तथा शेष में सम्राट भोज परमार का इतिहास है।

सम्राट भोज ने दिग्विजय के अंतर्गत संपूर्ण उत्तर भारत सहित दक्षिण भारत में विजय पताका फहराई। भारत में प्रारंभ से ही चक्रवर्ती शासन व्यवस्था रही है। अतः विजयी राज्यों से कर वसूल कर उन्हीं राजाओं को वहाँ का शासन सुपुर्द कर दिया जाता था। सम्राट भोज अपने जीवन में अंतिम युद्ध को छोड़कर जबकि मरणासन्न अवस्था में थे, एक भी युद्ध में पराजित नहीं हुये। लेखक ने पुष्ट प्रमाणों के साथ सम्राट भोज के दिग्विजय का वर्णन किया है।

सम्राट भोज परमार का राज्य विस्तार उदयपुर प्रशस्ति के अनुसार "भोज ने कैलाश पर्वत से मलयगिरी तक तथा उदयाचल से अस्ताचल तक चक्रवर्ती सम्राट पृथु के समान समस्त पृथ्वी पर शासन किया। सुदूर दक्षिण में चोल नरेश राजेंद्र चोल तक वह अपने दिग्विजय में गया था। चोल नरेश से उस की मित्रता थी।"

लेखक विजय नाहर ने सम्राट भोज परमार एवं मोहम्मद ग़ज़नवी शीर्षक से एक पूरा सातवाँ अध्याय दिया है। इस अध्याय में लेखक ने पुष्ट प्रमाणों से यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि मोहम्मद ग़ज़नवी थानेसर (हरियाणा ) से आगे ही नहीं बढ़ पाया ना व सिंध विजय कर पाया। तथा अपने सबसे प्रबल शत्रु शाकंभरी के गोविंद चौहान पर आक्रमण करने के लिए तन्नौट (जैसलमेर ज़िला) के भाटी राज्य पर आक्रमण किया। जहाँ उसे भाटी राजा विजय राज प्रथम, शाकंभरी के चौहान शासक गोविंद तृतीय तथा सम्राट भोज परमार की सेना से मुक़ाबला करना पड़ा। यही महमूद ग़ज़नवी की पराजय हुई। तुर्की सैनिकों की लाशों से रेगिस्तान पट गया। सम्राट भोज ने ग़ज़नी की ओर भागते मोहम्मद ग़ज़नवी का पीछा किया। ग़ज़नी में मोहम्मद ने गिड़गिड़ाकर कर माफ़ी माँगी और भविष्य में भारत भूमि की ओर नज़रें नहीं उठाने की प्रतिज्ञा की। यहाँ से भोज मक्का में मक्केश्वर महादेव की पूजा करके मालवा लौटे। गुजरात के सोमनाथ को मोहम्मद ग़ज़नवी द्वारा खंडित करने की बात सरासर झूठ एवं प्रवंचना है। लेखक की पुस्तक "प्रारंभिक इस्लामिक आक्रमणों का भारतीय प्रतिरोध" में इसका विस्तार से वर्णन मिलेगा।

लेखक ने सम्राट के लिए लिखा है कि सम्राट का कोई सानी नहीं था। वह जितना वीरता एवं पराक्रम में अद्वितीय था उससे अधिक विद्वान, साहित्यकार एवं साहित्यसृजक के साथ साथ साहित्यकारों का संरक्षक था। भोज की राज्यसभा में 500 विद्वान रहते थे। भोज ने विभिन्न विषयों पर 30 से अधिक ग्रंथ लिखे। भोज की शासन व्यवस्था ऐसी थी कि साम्राज्य में सर्वदूर सुख संपन्नता थी। इसके राज्य में सोने के सिक्के एवं मोहरे प्रचलित थीं।

लेखक ने ग्रन्थ में केवल राजनीतिक नहीं बल्कि सांस्कृतिक, सामाजिक आर्थिक, शैक्षणिक, साहित्यिक एवं वास्तुशिल्प की प्रगति एवं परिवर्तन का बड़े विस्तार से वर्णन किया है।

भोज ने धर्माधारित शासन व्यवस्था स्थापित की। विकेन्द्रित शासन व्यवस्था थी। कर बहुत कम थे, दंड व्यवस्था कठोर थी। समाज में महिलाओं का उच्च एवं आदरणीय सम्मानीय स्थान था। सम्राट भोज की पत्नी रानी अरुंधति एक विदुषी महिला थी।

लेखक के अनुसार सम्राट की राजधानी धारा नगरी बौद्धिक नगरी बन गई थी। 'भोजशाला' नाम से विश्वविद्यालय स्थापित किया। उसकी दीवारों पर व्याकरण के नियमों को सचित्र उत्कीर्ण करवाया। वह प्रत्येक कवि को उत्कृष्ट रचना पर एक लाख मुद्राएँ प्रदान करता था।

सम्राट भोज में भोजपुर नगर (वर्तमान भोपाल के पास) बसा कर एक विशाल सरोवर भोज सागर का निर्माण करवाया जो 350 वर्ग मील के क्षेत्र में 365 धाराओं से एकत्र जल से भरवाने की व्यवस्था की। धारा नगरी में सरस्वती मंदिर का निर्माण सरस्वती सदन नाम से किया।

विजय नाहर भारतीय इतिहास संकलन योजना के राजस्थान क्षेत्र के महामंत्री रहे है। ग्रंथ की भाषा सरल एवं सटीक है सहज प्रवाह के साथ ग्रन्थ की शैली अच्छी है। सम्राट भोज से पूर्व के शासकों पर लेखक की पुस्तकें शीलादित्य सम्राट हर्षवर्धन एवं उनका युग, सम्राट यशोवर्मन, सम्राट मिहिर भोज प्रकाशित हो चुकी हैं। जिनमें लीक से हटकर भारतीय इतिहास के असली स्वरूप को उजागर करने में लेखक ने बहुत बड़ा प्रयत्न किया है।

पुस्तक समीक्षक
प्रो. देवाराम जोहन्सन
व्याख्याता, इतिहास
बांगड़ कॉलेज, पाली
 

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