संकल्प
काव्य साहित्य | कविता शशि पाधा30 Dec 2007
रात गई, बात गई
आओ दिन का अह्वान करें
भूलें तम की नीरवता को
जीवन में नव प्राण भरें
आओ छू लें अरुणाई को
रंग लें अपना श्यामल तन
सूर्यकिरण से साँसे माँगें
चेतन कर लें अन्तर्मन
ओस कणों के मोती पीकर
स्नेह रस का मधुपान करें।
दोपहरी की धूप सुहानी
आओ इसका सोना घोलें,
छिटका दें वो रंग सुनहरी
पंखुड़ियों का आनन धो लें
डाली- डाली काँटे चुन लें
फूलों में मुसकान भरें।
मलय पवन से खुशबू माँगें
दिशा- दिशा महका दें
पंछी छेड़ें राग रागिनी
तार से तार मिला लें
नदिया की लहरों में बहकर
सागर से पहचान करें।
शशि किरणों से लेकर चाँदी
संध्या का शृंगार करें
आँचल में भर जुगनू सारे
सुख सपने साकार करें
निशी तारों के दीप जलाकर
आओ मंगल गान करें।
डाली पर इक नीड़ बना कर
हरी दूब की सेज बिछाएँ
नभ की नीली चादर ओढ़ें
सपनों का संसार बसाएं
सुख के मोती चुन लें सारे
चिर जीवन का मान करें
भूलें तम की नीरसता को
आओ नव रस पान करें
नव वर्ष की नई ऊषा में
जीवन में नव प्राण भरें।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
पुस्तक समीक्षा
कविता
सामाजिक आलेख
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं