सत्य
काव्य साहित्य | कविता विमला भंडारी29 Nov 2014
यह सत्य भी क्या है?
खड़ा रहता है
सौ झूठ के बीच भी
अकड़कर
न डरता है
न रुकता है
न झुकता है
बस खड़ा है तनकर
सौ झूठ के बीच भी
लड़कर
बहुत डराया
बहुत धमकाया
बहुत हुआ परेशान
माने न ज़िद्दी है बड़ा
सौ झूठ के बीच भी
अकेला खड़ा
कठिनाई से
संघर्ष से
थपेड़ों से
न हिला न डुला
सौ झूठ के बीच भी
अटल खड़ा
लालच के आगे
रूप के पीछे
कहीं न भागे
कहीं न डिगे
यूँ ही अड़ा
सौ झूठ के बीच भी
निडर खड़ा
अडिग
अविचल
ये सत्य क्या है?
मंद मंद चहुं ओर फैलता
हो जाता है बुलंद
सौ झूठ से टकराकर
निर्मल खड़ा
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