अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

सावन में शिव भक्तों को समर्पित

वर्षा की बूँदों ने जब 
सावन की याद दिलाई
मन में मेरे कुछ प्रश्नों की 
एक बदरी ही घिर आई,
 
इस मोहक मास के आते ही 
जनमानस शिव को मनाता है
क्या है विशेष जो शंकर को 
यह सावन मास सुहाता है?
 
समझाया मुझको प्रज्ञा ने 
वर्षा पा प्रकृति विहँसती है,
आश्चर्य भला इसमें कैसा, यह 
ऋतु शिव को प्रिय लगती है।

यह भोला आदिदेव शंकर 
सर्वोच्च प्रकृति संरक्षक है
पर्वत निवास आभरण सर्प 
वन की बूटी ही भोजन है
 
जल का आदर करने को ही 
गंगा को शीश चढ़ाया है
नभ-वायु प्रदूषित हो न जाएँ, 
सो चंद्र मुकुट बनवाया है,
 
हम पूजा शिव की करते हैं, 
पर भक्ति भाव को भूल गए, 
संदेश दिया शंकर ने  जो 
समझा न उसे, हम चूक गए।
 
पर्वत ने अपनी पुत्री दे उसको, 
निज पुत्र बना डाला
उस पर्वत को तोड़ा हमने, 
क्या पड़ा बुद्धि पर है ताला?
 
जिसका घर नष्ट किया जाता, 
क्या क्रोध ना उसको आएगा,
निज गृह की रक्षा करने को, 
भूस्खलन न वह करवाएगा?
 
गंगा और उसकी बहनों को 
मानव ने दूषित कर डाला,
"शिव का पूजक" कहलाने का 
झूठा भ्रम हमने है पाला!
 
है "पशुपति" यह भोले बाबा 
इसका भी हमको ध्यान नहीं,
जंगल हमने इतने काटे, 
पशुओं के लिए कोई स्थान नहीं।
 
हो गई वायु इतनी धूमिल, 
चंदा का दर्शन दुर्लभ है,
द्वितिया का चंद्र दिखे कैसे,
पूनम का इंदु भी ओझल है।
 
गायें नंदी की माता हैं, 
उनको सड़कों पर छोड़ दिया,
कूड़ा-कचरा, प्लास्टिक थैली 
खाने को उनको विवश किया।
 
काँवर लेकर चलने से, सावन–भर 
भूखे रहने से क्या शिव प्रसन्न हो जाएँगे?
अपने अति प्रिय इन मित्रों का 
अपमान सहन कर पाएँगे?
 
यदि होश नहीं आया अब भी, 
निश्चय विनाश हो जाएगा, 
विष बन जाएगी प्राण-वायु, 
पर्वत पाहन बरसायेगा। 
 
शिव आशुतोष, अवढर दानी, 
"प्रलयंकर" भी कहलाता है,
सृष्टि का होता सर्वनाश.,
जब तांडव. वह दिखलाता है। 
 
हे भक्तजनो! हे शिव भक्तो!!
है अभी समय अब से चेतो,
शिव की अब भक्ति करो ऐसी, 
जो उसका क्रोध नियंत्रित हो।
 
नदियों को करो पुनः निर्मल,
वन को हरियाली से भर दो,  
पर्वत की पीड़ा को समझो, 
मत नित उस पर आघात करो।
 
जब धरती शुची, सुंदर होगी, 
"शिव" का प्रसाद हम पाएँगे;
आनेवाली  निज संतति को, 
एक नई धरा दे जाएँगे।

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

शैली 2021/08/27 02:17 PM

जै शिव शंकर, सुन्दर संदेश

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

अनूदित लोक कथा

कविता

यात्रा-संस्मरण

ललित निबन्ध

काम की बात

वृत्तांत

स्मृति लेख

सांस्कृतिक आलेख

लोक कथा

आप-बीती

लघुकथा

कविता-ताँका

सामाजिक आलेख

ऐतिहासिक

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं