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सीखे नहीं सबक़ भी

सीखे नहीं सबक़ भी किसी दास्तां से हम 
आगे कभी न बढ़ सके अपने निशां से हम 

तू एक बार हमको लगाता तो इक सदा 
आ जाते लौट कर भी किसी आसमां से हम 

दुनिया के साथ चलके वो आगे निकल गये
लिपटे हुए हैं आज भी अपने मकां से हम 

माँगा जो उसने हमने वो वादा तो कर दिया
सोचा नहीं निभायेंगे इसको कहाँ से हम 

ईमां भी बेच दूँ मैं मगर यह तो सोचिये 
जायेंगे खाली हाथ ही इक दिन जहाँ से हम 

अपना पता है हमको न अपनी कोई ख़बर 
गुज़रे ये राहे -इश्क़ में कैसे मकां से हम 

कहने को उनके साथ में"बिरदी" जी चल रहे 
गुज़रे क़दम-क़दम पे किसी इम्तिहां से हम

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