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शनिदेव बनाम पुलिसदेव

’शनिदे........व‘ की एक लम्बी सी हाँक लगाकर जोशी जी अपना आटे का गट्ठर और तेल की पिपिया नीचे उतारकर दरवाजे की चौखट पर बैठ जाते थे। उन्हें दुबारा आवाज लगाने की आवश्यकता कभी नहीं पड़ती थी क्योंकि ग्रहिणियाँ प्रत्येक शनिवार को प्रातः से ही उनकी प्रतीक्षा करने लगतीं थीं और उनकी हाँक सुनकर तुरंत बड़े कटोरे भर आटा और कटोरी भर तेल लेकर शानिदेव को शांत करने चल देतीं थीं। जोशी जी ने उस कस्बे की ग्रहिणियों के मन में शनिदेव के प्रकोप का ऐसा भय भर रखा था कि उनकी हाँक की अवहेलना कोई ग्रहिणी अपने पति अथवा पुत्र के किसी गहन अनिष्ट का खतरा मोल लेकर ही कर सकती थी।

शनिदेव के प्रताप से होने वाली इस साप्ताहिक आमदनी के अतिरिक्त जोशी जी ने कतिपय अन्य प्रपंच भी फैला रखे थे। वह उन घरों का पता लगाये रहते थे जिनम कुछ समस्या हो- जैसे पति-पत्नी में अनबन चल रही हो, या बच्चा पैदा न हो रहा हो, या पति किसी अन्य स्त्री के चक्कर में हो, या घर में कोई लम्बी बीमारी से ग्रस्त हो। फिर जोशी जी उस घर का दरवाजा उस समय खटखटाते थे जब पति घर से बाहर गया हो। पत्नी के दरवाजा खोलते ही ’ईश्वर रक्षा करे‘,’ओउम् शनिः शांति‘ जैसे शब्दोच्चारण के साथ पत्रा खोलकर बैठ जाते थे और बिन पूछे ही बातों बातों में पहले ग्रहिणी के मन में विद्यमान क्लेश और फिर उसका समाधान बताने लगते थे। समाधान प्रायः किसी देवी-देवता की पूजा, हवन आदि  होता था, जिसे उस महिला के घर करने में अथवा अपने घर पर कर देने के आश्वासन पर सौ दो सौ रुपये झटक लेते थे।

एक बार होली के लगभग एक माह पूर्व जोशी जी एक दोपहर में पुलिस के एक सिपाही के घर उस समय पहुँच गये, जब सिपाही ज़िला मुख्यालय गया हुआ था। सिपाही स्थानीय थाने पर तैनात था परंतु सरकारी मकान न मिल पाने के कारण किराये के मकान मे कस्बे में रहता था। विवाह के पश्चात पाँच वर्ष बीत जाने पर भी संतानहीन था, अतः पत्नी बड़ी चिंतित रहती थी। जोशी जी पत्रा खोलकर शनीचर की साढ़े साती होने के कारण संतान सुख में बाधा होने की बात बताने लगे। घबराई हुई पत्नी द्वारा उपाय पूछने पर लम्बी सी पूजा की विधि बताते हुए बोले,

’पऊजा पूरे सप्ताह भर चलेगी - चाहे तो अपने घर करा लें और चाहे तो मैं अपने घर कर लूँ।‘

पत्नी को आशंका थी कि उसके पति इस पूजा हेतु कभी राजी नहीं होंगे क्योंकि वह पहले भी शनिदेव के नाम पर साप्ताहिक वसूली करने वाले इन जोशी जी के विरुद्ध बहुत बार बोल चुके थे। अतः पत्नी ने जोशी जी को अपने घर ही पूजा कर लेने को कहा और उनके बताये अनुसार सात सौ रुपया पूजा हेतु उन्हें दे दिये। होली के तीन दिन पहले जब सिपाही ने होली पर नये कपड़े क्रय करने हेतु रुपये पत्नी से माँगे, तब उसे पता चला कि रुपये तो जोशी जी पुत्रेष्टि यज्ञ करने हेतु ले गये हैं। सिपाही ने पत्नी को तो भला बुरा कहा परंतु जोशी जी के प्रति कस्बे वालों में इतनी भयमिश्रित श्रद्धा थी कि उनसे कुछ न कह सका और मनमसोस कर रह गया। उसने थाने में अन्य पुलिसवालों से अवश्य जोशी जी द्वारा स्वयं के ठगे जाने का ज़िक्र किया।

फिर होली आई और रंग वाली होली के दूसरे दिन पुलिस के सिपाही अपने थाने के सामने आपस में होली खेल रहे थे- चूँकि रंग वाले दिन वे ड्यूटी पर रहते हैं अतः उसके दूसरे दिन ही उनमें होली खेलने का रिवाज है। होली शांतिपूर्वक बीत जाने के कारण पुलिस वाले उस दिन खूब पी-पाकर मस्ती में थे। वह शनिवार का दिन था और जोशी जी तमाम घरों से वसूली कर अपने घर जाने हेतु थाने के सामने से गुज़र रहे थे। जोशी जी आज विशेष प्रसन्न थे क्योंकि होली होने के कारण आज आटे के अतिरिक्त गुझिया, पेड़ा, बर्फी आदि मिठाइयाँ भी खूब मिलीं थीं। तभी उस सिपाही ने उन्हें देख लिया। उसने दौड़कर उनकी आटा-मिठाई की पोटली और तेल की पिपिया छीन कर जमीन पर रख दी  और जोशी जी को रंग से सराबोर कर दिया। फिर उनकी पोटली से मिठाई गुझिया खाने लगा। जोशी जी द्वारा विरोध प्रदर्शित करने पर नशे में मस्त अन्य पुलिस वालों को भी इस खेल में मजा आने लगा और वे सब मिलकर उनकी मिठाई उड़ाने लगे। उसी दौरान उस सिपाही ने उनकी धोती खींची, जिसे रोकने का प्रयत्न करने पर वह होली खेलने के बहाने जोशी जी से धक्कामुक्की करने लगा। सिपाही के मित्रगण, जिन्हें जोशी जी द्वारा ठगी का किस्सा ज्ञात था, भी इस खेल में शामिल हो गये और जोशी जी का न सिर्फ़ धोती-कुर्ता फाड़ दिया, वरन् धक्कामुक्की कर उन्हें खूब घींचे भी लगाने लगे। जोशी जी समझ गये कि उनकी यह दशा क्यों बन रही है। अतः वह किसी तरह थाने के अंदर भागकर इंस्पेक्टर साहब के पैरों पर गिर गये और दुहाई देने लगे,

’हुजूर! आज बचा लीजिये। अब कोई गलती नहीं होगी।‘

इंस्पेक्टर साहब को जोशी जी पर तरस आ गया और उनके ललकारने पर सिपाही शांत हुए।

इस घटना के पश्चात जोशी जी कभी किसी पुलिसवाले के घर के आस पास भी शनिदेव शमन हेतु जाते हुए नहीं देखे गये हैं।

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