अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

शेष यात्रा

 

सभी मार्ग 

वहीं तक आते हैं

सभी रास्ते 

यहाँ आकर चलते-चलते 

रुक जाते हैं 

सभी मार्ग 

केवल यहीं तक पहुँचाते हैं 

ऐसा नहीं कि 

रास्ता थोड़ी देर के लिए 

या कुछ दिनों के लिए 

बन्द हुआ हो– और 

मौसम खुलने पर फिर

चलने लगेगा 

तुम इस समय जहाँ हो

वहीं खड़े-खड़े 

आगे की ओर देखकर 

पता लगाने की कोशिश करो-

आगे घाटी है, झाड़ी है 

खाई है, कोई निर्जन द्वीप 

या केवल एक महाशून्य 

यहाँ खड़े होकर 

तुम याद कर सकते हो 

फिसलन भरी उन चट्टानों को 

जिन पर गिरते-गिरते 

तुम बचे थे 

सोच सकते हो

उन आघातों के बारे में 

जो किसी दबी हुई चोट की तरह 

तुम्हारी पोरों में अब भी कराहती हैं 

तुम्हारे पूर्व संचित संस्कार 

तुम्हारे संकल्प 

तुम्हारी निष्ठाएँ, तुम्हारे विश्वास 

तुम्हारी मान्यताएँ, तुम्हारी आस्थाएँ 

तुम्हारे सम्बन्ध, तुम्हारी प्रार्थनाएँ 

तुम्हें यहीं तक ला सकती थीं 

जहाँ सब कुछ ठहरा हुआ है 

शेष यात्रा के 

इन बचे हुए क्षणों में 

इस निस्तब्ध प्रहर में 

न कोई पथ है न पथ प्रदर्शक 

तुम ही अपना पथ हो

तुम ही अपना सम्बल हो 

अब कोई दिशा संकेत नहीं है 

तुम केवल–

अनन्त प्रतीक्षा हो|

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं