शेष यात्रा
काव्य साहित्य | कविता प्रवीण शर्मा1 Apr 2021 (अंक: 178, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
सभी मार्ग
वहीं तक आते हैं
सभी रास्ते
यहाँ आकर चलते-चलते
रुक जाते हैं
सभी मार्ग
केवल यहीं तक पहुँचाते हैं
ऐसा नहीं कि
रास्ता थोड़ी देर के लिए
या कुछ दिनों के लिए
बन्द हुआ हो– और
मौसम खुलने पर फिर
चलने लगेगा
तुम इस समय जहाँ हो
वहीं खड़े-खड़े
आगे की ओर देखकर
पता लगाने की कोशिश करो-
आगे घाटी है, झाड़ी है
खाई है, कोई निर्जन द्वीप
या केवल एक महाशून्य
यहाँ खड़े होकर
तुम याद कर सकते हो
फिसलन भरी उन चट्टानों को
जिन पर गिरते-गिरते
तुम बचे थे
सोच सकते हो
उन आघातों के बारे में
जो किसी दबी हुई चोट की तरह
तुम्हारी पोरों में अब भी कराहती हैं
तुम्हारे पूर्व संचित संस्कार
तुम्हारे संकल्प
तुम्हारी निष्ठाएँ, तुम्हारे विश्वास
तुम्हारी मान्यताएँ, तुम्हारी आस्थाएँ
तुम्हारे सम्बन्ध, तुम्हारी प्रार्थनाएँ
तुम्हें यहीं तक ला सकती थीं
जहाँ सब कुछ ठहरा हुआ है
शेष यात्रा के
इन बचे हुए क्षणों में
इस निस्तब्ध प्रहर में
न कोई पथ है न पथ प्रदर्शक
तुम ही अपना पथ हो
तुम ही अपना सम्बल हो
अब कोई दिशा संकेत नहीं है
तुम केवल–
अनन्त प्रतीक्षा हो|
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