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शोधपरक विचारों का अविरल प्रवाह

पुस्तक : विचार प्रवाह
लेखिका : डॉ. सुरंगमा यादव
प्रकाशक : बुक पब्लिकेशन, लखनऊ
मूल्य : 300/-
पृष्ठ : 112

डॉ. सुरंगमा यादव की सद्यः प्रकाशित पुस्तक ’विचार प्रवाह’ उनके समय-समय पर प्रकाशित कुल नौ शोधपरक आलेखों का संग्रह है। इन शोधपरक आलेखों में जहाँ एक ओर विभिन्न विषयों को शोधपरक दृष्टि से देखा गया है, वहीं निष्कर्ष रूप में संबंधित विषयवस्तु की वर्तमान समय में उपादेयता को भी पाठक के समक्ष लाया गया है। डॉ. सुरंगमा यादव लिखती हैं, "मनुष्य एक बुद्धिजीवी प्राणी है, इसीलिए वह नवीन ज्ञान की प्राप्ति के समय पूर्व में प्राप्त ज्ञान का परीक्षण भी करता है। वास्तव में इससे ज्ञान का परिष्कार व विस्तार भी होता है। यही प्रक्रिया शोध कहलाती है।" इन सभी शोधलेखों में लेखिका ने उपरोक्त प्रक्रिया का पूर्णतया पालन किया है। 

प्रथम आलेख में ’नैतिक मूल्यों की पुनर्स्थापना में रामचरित मानस की भूमिका’ का वर्णन किया गया है। तुलसी की विभिन्न चौपाइयों का उदाहरण देकर डॉ. सुरंगमा यादव लिखती हैं, "रामचरितमानस का पठन-पाठन समाज को सही दिशा दे सकता है और विघटित होते मानव-मूल्यों की पुनर्स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। ’रामकथा में वनगमन प्रसंग’ आलेख इस मार्मिक घटना को अपने नज़रिये से देखने का आलेख है। सीता का परित्याग और राम का निर्णय दोनों पर ही भावुक हृदय से विचार किया गया है। 

हिन्दी भाषा अकेले खड़ी बोली मात्र नहीं है, अपितु पाँच उपभाषाओं और सत्रह बोलियों का समुच्चय है। अनेक बार ऐसे प्रयास हुए हैं कि अन्य बोलियों को हिन्दी से अलग कर दिया जाये। ’हिन्दी की बोलियाँ और आठवीं अनुसूची’ आलेख इस विषय पर व्यापक प्रकाश डालता है। मोहन राकेश द्वारा रचित प्रख्यात नाटक ’आषाढ़ का एक दिन’ कालिदास और मल्लिका की प्रख्यात प्रेमकथा है। मल्लिका का जीवन पुरुषवादी वर्चस्व से शोषित-दमित है। वारांगना का जीवन जीने को मजबूर मल्लिका की करुण कथा प्रस्तुत आलेख में द्रष्टव्य है। छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद सदैव नारी की उज्ज्वल गाथा को अपनी लेखनी का विषय बनाते रहे । ’कामायनी’ जैसे महाकाव्य में भी उन्होंने नारी का उदात्त चरित्र सबके सामने रखा। प्रसाद के नाटक भी इसी परंपरा का पालन करते दिखयी देते है। सन 1933 में प्रकाशित नाटक ’ध्रुवस्वामिनी’ में प्रसाद ने स्त्रियों के प्रति स्वस्थ एवं संवेदनशील दृष्टिकोण विकसित किया है। पुस्तक के पाँचवे आलेख ’ध्रुवस्वामिनी में नारी जागरण की चेतना’ में लेखिका इसी विषय को आख्यायित करती हैं।

 कृष्णा सोबती हिन्दी की प्रख्यात महिला कथाकार रही हैं। आपके उपन्यासों में स्त्री मुक्ति का स्वर सतत् सुनायी देता है। ’समय सरगम’ आपका प्रसिद्ध उपन्यास है, जिसे डॉ. सुरंगमा यादव अनुराग- विराग से परे अनाम रिश्ते की कथा कहकर पुकारती हैं। पंडित वंशीधर शुक्ल का नाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, प्रख्यात कवि और प्रखर राजनेता के रूप में सदैव स्मरणीय है। उनका जनवादी लेखन सोयी जनता को जाग्रत करने वाली हुँकार है। ’वंशीधर शुक्ल की प्रगतिवादी चेतना और सामाजिकता’ नामक लंबे आलेख में लेखिका का महत्वपूर्ण निष्कर्ष द्रष्टव्य है, "सामाजिक यथार्थ, मानवतावाद, शोषक वर्ग के प्रति विद्रोह, शोषितों की दीन-दशा का चित्रण, क्रान्ति का आह्वान, ग्राम्य जीवन और प्रकृति का यथार्थ चित्रण, राष्ट्रीय चेतना तथा हास्य व्यंग्य आदि उनके काव्य के मुख्य विषय हैं।"

महाकवि सूरदास वैसे तो कृष्णभक्ति धारा के प्रतिनिधि कवि रहे हैं, फिर भी उन्होंने रामकाव्य का सृजन भी किया है। कुल 92 पदों में श्रीमद्भागवत् पुराण में श्रीरामकथा का वर्णन मिलता है। सूरदास ने इन्हीं पदों को आधार बनाकर रामकाव्य को प्रतिष्ठित किया है। विदुषी लेखिका ने ’सूर के रामकाव्य में पारिवारिक एवं सामाजिक संबंधों का चित्रण’ शाीर्षक के अन्तर्गत महत्वपूर्ण निष्कर्ष प्रतिपादित किये हैं। मुक्तक शैली में रचित यह रामकाव्य सूरसाहित्य का एक महत्वपूर्ण अंग है। ’भारतेन्दु युगीन काव्य में प्रयुक्त लोक प्रचलित गीत-शैलियों में देश और समाज’ आलेख में प्राचीन और नवीन का सामंजस्य करते भारतेंदु हरिश्चंद्र के काव्य में देश और समाज के प्रति चिंता दर्शाते तत्त्वों का प्रकटीकरण किया गया है। लोकजीवन के तत्त्वों को भारतेंदु ने लोकछन्दों में गाया। 

प्रस्तुत पुस्तक के सभी आलेख शोधतत्त्वों से युक्त और पूर्णतया ज्ञानवर्द्धक हैं। लेखिका की बहुज्ञता, विद्वता और अन्वेषी दृष्टि यहाँ दर्शनीय है। विषयवस्तु के प्रस्तुतिकरण और निरूपण में डॉ. सुरंगमा यादव की प्रवीणता प्रणम्य है। भाषा गवेषणात्मक है। यदि शोधलेखों में उचित संदर्भ भी होते, तो इनकी उपयोगिता और बढ़ जाती। कुल मिलाकर ’विचार प्रवाह’ के ये सभी आलेख विचारों की गंगा में पाठक को अपने साथ बहा ले जाते हैं। 

समीक्षक-डॉ. नितिन सेठी
सी-231, शाहदाना कॉलोनी
बरेली-243005

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