स्मृतिकरण
काव्य साहित्य | कविता राजनन्दन सिंह15 Dec 2020
काग़ज़ नहीं था
क़लम नहीं थी
स्याही नहीं थी
लिपि भी नहीं थी
तब भी जारी था
मनुष्य का चिंतन
और उत्पन्न विद्या का
मस्तिष्क में ही होता था संरक्षण
कठिन अभ्यास
रट-रट स्मरण
गुरु से शिष्य
शिष्य से पुनः शिष्य
और मस्तिष्क से
मस्तिष्क में स्थानांतरण
अनायास ही
मनुष्यों ने उँगलियों से
धरती पर अंकित किये होंगे
अपनी स्मृति के लिए
कोई स्मृति चिह्न
और सफल रहने पर
दूसरे दिन फिर कोई
दूसरा स्मृति चिन्ह
और शुरू हो गया होगा
स्मृतियों को रेखा चिह्नों में
सँजोने का सिलसिला
फिर चिह्नों से संकेतक चित्र
चित्र से लिपि
लिपि से वर्ण
वर्ण से शब्द
शब्द से वाक्य
और वाक्यों से अभिव्यक्ति
यानि भावों ध्वनियों का
लिपि में रुपांतरण
विचारों का लिप्यंतरण
स्मृतियों का लिपि में संरक्षण
स्मृतिकरण
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