सूरज तुम पलायन नहीं कर सकते...
काव्य साहित्य | कविता डॉ. विवेक कुमार6 Nov 2016
मैं जानता हूँ सूरज
कि तुम संशय और समस्याओं से
आँखें चुराकर स्वयं को असत्य रूपी
अंधकार के हवाले कभी नहीं कर सकते
क्योंकि तुम जानते हो कि
सत्यप्रकाश को छुपाना असत्य रूपी
अंधकार के सामर्थ्य की बात नहीं...
मैं जानता हूँ सूरज
तुम पलायन नहीं कर सकते
छुप नहीं सकते अपने विरोधी से साँठ-गाँठ कर
क्योंकि तुम जानते हो
कि तुम अकेले नहीं हो
तुम्हारे पीछे है गतिमान संपूर्ण सृष्टिचक्र...
भले यह संभव है कि
संशय और भ्रम की काली चादर
तुम पर हावी होकर
पल दो पल के लिए तुम्हें ढँक ले
किंतु मैं जानता हूँ
जीवन चक्र कभी रुक नहीं सकता
तो फिर संचालनकर्ता भला कैसे रुक सकता है!
शायद इसलिए मैं तुम्हें बहुत पसंद करता हूँ सूरज
आश्वस्त हूँ मैं और बेसब्री से प्रतीक्षारत भी
तुम्हारे निकलने का
तुम्हारे पुनः मेरे विश्वास के आसमान में निकलने का...
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