स्थिर परम्पराएँ
काव्य साहित्य | कविता रचना गौड़ 'भारती'13 Jan 2016
आओ चलो पत्थरों की फसलें उगाएँ
कुछ ताजिये ठंडा करें
कुछ गणेश प्रतिमाएँ विसराएँ
बारम्बार रीतियों के चक्र में
कुछ नीतियों को खोदें
कुछ को दफनाएँ
स्थिर प्रकृति के चलचित्रों से
इनको थोड़ा अलग बनाएँ
आओ चलो पत्थरों की फसलें उगाएँ
ऊँचे ढकोसलों की ऊहापोह में
इमान से गिरता इंसान बचाएँ
ठकुरसुहाती सुनने वालों को
उनका चरित्र दर्पण दिखलाएँ
होगा न रंगभेद डुबकी लगाने से
सागर में थोड़ी नील मिलाएँ
नीले अंबर से सागर का समागम करवाएँ
आओ चलो पत्थरों की फसलें उगाएँ
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