स्त्री विमर्श
काव्य साहित्य | कविता डॉ. मधु सन्धु23 Nov 2011
लिखा है
महर्षि दुर्वासा
अपनी असंयत क्रोधाग्नि से
उपेक्षित करने वाली
पुंजकस्थली को
बंदरी का
शकुन्तला को
पति-विस्मरण का
शाप देते आए हैं
जानते हो
बलात्कार
देवताओं का अधिकार क्षेत्र है
इन्द्र की तरह।
और ऋषि पति
पत्नियों को पत्थर बनाते आए हैं
सतयुग से। (चोर चोर मौसेरे भाई)
तुम्हें पता है
राजकन्याओं की नियति?
डम्बो पति
माँओं की आज्ञाएँ शिरोधार्य करते
पत्नियों को मिल बाँट चखते थे
शूरवीर पांडवों की तरह।
अम्बाएँ
यहाँ से वहाँ
वहाँ से यहाँ
लुढ़कती रही
अग्नि संचित करती रही
प्रतिशोध लेने को
जन्म जन्मान्तर तक
द्वापर में।
याद है
राजरानी पत्नियों के
सतीत्व के निर्णायक सुप्रीम कोर्ट
धोबी घाट में लगते थे
और
धर्मपरायण राजा
सिर झुकाए दंड विधान मानते थे
त्रेतायुग में।
और कहते हैं कि
सफ़ेद संगमरमर से बना
आगरे का ताजमहल
एक बादशाह ने
अपनी पत्नी की कब्र हेतु
बनवाया था
मृत्युपरान्त का स्थायी निवास
कलिकाल में।
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