सुख की रोटी
काव्य साहित्य | गीत-नवगीत शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’27 Jan 2018
सुख की चोटी
दुख के परबत
से कुछ छोटी है
साँस रोकतीं
खुली हवायें
भूख सुनाती
असह कथायें
पड़ा हुआ है
लटका जीवन
महँगी रोटी है
छल-छंदों के
अपने नारे
करते हैं जो
वारे-न्यारे
चली उसी की
जिसके हाथों
दौलत मोटी है
मूक समर्थन
रोना रोता
समाधान का
शैशव सोता
लोकतंत्र भी
चुटकी काटा
फटी लँगोटी है
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