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सुनो! कबीर

सुनो कबीर 
बचाकर रखना 
अपनी पोथी।

 

सरल नहीं 
गंगा के तट पर
बातें कहना,

 

घड़ियालों ने 
मानव बनकर 
सीखा रहना,

 

हित की बात 
ज़हर सी लगती 
लगती थोथी।

 

बाहर कुछ 
अन्दर से कुछ हैं 
दुनिया वाले,

 

उजले लोग,
मखमली कपड़े,
दिल हैं काले,  

 

सब ने रखी
ताक़ पर जाकर 
गरिमा जो थी।
 

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