सूर्यास्त
काव्य साहित्य | कविता - हाइकु निर्मल सिद्धू15 Oct 2019
आज जो चला
कल फिर आयेगा
प्रतीक्षा कर,
डूबे ना कभी
उम्मीद का सूरज
हौंसला रख
बेला विदा की
चेहरे पे मगर
वही लालिमा,
गर्म हवायें
होने लगी हैं तेज़
चारों तरफ़,
चिन्ता ना करो
सूरज ग़ुरूर का
हो जाता अस्त,
कैसा है तेज
भय नहीं मृत्यु का
वीर सिपाही
कर्म किये जा
मिलेगा मुक़द्दर
आज या कल
जो होश आई
जवानी का सूरज
था ढल चुका,
रौशन हुईं
दिशायें जीवन की
तेरे आने से,
चलते रहो
सूरज ने पुकारा
मान लो बात,
जाते सूर्य की
किरणों ने ये कहा
फिर मिलेंगे
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