सूनी रह गई बगिया
काव्य साहित्य | कविता कुन्दन कुमार बहरदार1 Feb 2020 (अंक: 149, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
रचा ली है तेरे नाम की हिना,
विरान है तेरे बिना मेरा हिया।
दिन तो कट जाता है कैसे भी,
तेरे बिना कटती नहीं रतिया॥
रक्त जो बहता है शिराओं में,
वो भी सुस्त पड़ गया है पिया।
हर आहट पर दौड़ पड़ती हूँ,
ये कैसा मर्ज़ है तूने दिया॥
पुष्प की अभिलाषा तुम्हें थी न,
फिर कैसे सूनी रह गई बगिया।
कैसी उदासी छायी है चीर पर,
सूनी - सूनी है माथे की बिंदिया॥
तुम सागर थे मेरे जीवन के,
अब अधूरी है मेरी नदिया।
सूख गयी है रो रो के यादों में,
पथरा गई हैं मेरी दोनों अँखिया॥
पर मुझे फ़ख़्र है तेरी बनी भार्या,
माँ के लिए खुद को अर्पण किया।
तिरंगा से लिपट सो गए हो तुम,
दुश्मनों का संहार कर साथिया॥
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