सूरज की हर किरन तेरी सूरत पे वार दूँ
शायरी | ग़ज़ल अब्दुल हमीद ‘अदम‘26 Jun 2007
सूरज की हर किरन तेरी सूरत पे वार दूँ
दोजख़ को चाहता हूँ कि जन्नत पे वार दूँ
इतनी सी है तसल्ली कि होगा मुक़ाबला
दिल क्या है जां भी अपनी क़यामत पे वार दूँ
इक ख़्वाब था जो देख लिया नींद में कभी
इक नींद है जो तेरी मुहब्बत पे वार दूँ
‘अदम‘ हसीन नींद मिलेगी कहाँ मुझे
फिर क्यूँ न ज़िन्दगानी को तुर्बत पे वार दूँ
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