स्वप्न की जलती राह
काव्य साहित्य | कविता सरिता यादव15 Apr 2019
कुछ उथले से कुछ गहरे से।
भाँति भाँति के चित्र उभर कर बूँद बूँद बिखरे से।
हाँ यही स्वप्न और जीवन है।
जिनको जन मानस पालता है।
मन के कोने कोने में।
कुछ हाँ मीठी कुछ तीखी याद में बीते।
किन्तु शीतल शीघ्र गर्म हवा में रीते।
काँच की तरह बिखर जाएँ फ़र्श पर,
पल भर में, सँजोए सारे स्वप्न।
बस यही ज़िन्दगी है।
उम्र के गलियारे हर मोड़ नये होते हैं।
मिले कई बिछड़े कई।
अन्त में कौन किसके साथ होते हैं?
यही ज़िन्दगी है।
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