स्वप्न
काव्य साहित्य | कविता-मुक्तक प्रदीप कुमार दाश 'दीपक'1 Aug 2019
क्षितिज ...
छूना आसान
छू लूँ ...
व्यर्थ न हो स्वप्न
सहेज तो लूँ पहले
अपने हिस्से के आकाश को।
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