अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

स्वप्नप्रिया

हे प्रिये! स्वप्न में छवि तुम्हारी
लगी रति की परछाई...
मन मदन हुआ विचलित होकर
तन उठी अजब सी तरुणाई..

1) नीरज की नव पाँखों जैसे
ओष्ठ तुम्हारे पुलकित हैं...
सावन के बहते समीर से
केश अति आह्लादित हैं...
शशि सम मुख की शोभा गढ़ते
नयन युगल अति प्यारे हैं...
उपवन के सुंदर सुमनों सम
प्रिय कपोल द्वय न्यारे हैं...

हे प्रिये! स्वप्न में छवि तुम्हारी
लगी दामिनी मचलाई...
मन गगन हुआ विस्तृत होकर
तन श्यामल गात घटा छाई...

2) रजनीगन्धा सा महके तन
मन मृदु भावों का स्पंदन है...
ऊसर जीवन में तवागमन
ज्यों मेघदलों से सिंचन है...
अहसासों की नदी उफनती
तट खण्डन को आतुर है...
है रत्नाकर का आमंत्रण
तटिनी बंधन को आतुर है...

हे प्रिये! स्वप्न में छवि तुम्हारी
लगी स्नेह की पुरवाई...
तन विटप हुआ विह्वल होकर
मन शाखा-शाखा लहराई...

3) लट लहराती लम्पट काली
तव मुखमण्डल पर बलखाए...
पदचापों से स्वर्णिम घुँघरू
मधुरम गाए मन हर्षाए...
कोमल कटि पर कनक कणकती
करे कामिनी अठखेली...
है दिवस सुनहरा मित्र तुम्हारा
रजनी है प्यारी हेली...

हे प्रिये! स्वप्न में छवि तुम्हारी
लगी चाँदनी मुस्काई...
मन शशि हुआ निर्मल होकर
तन धवल चाँदनी फैलाई...

हे प्रिये! स्वप्न में.....

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं