तालाबन्दी - 2
काव्य साहित्य | कविता डॉ. महेश आलोक1 Jul 2020 (अंक: 159, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
एक मज़दूर ने मज़दूरों के शोषण पर
लिखीं तमाम कविताएँ
उसने रोटी पर कविताएँ लिखीं
लिखीं भूख पर
अब वह लौट रहा है अपने गाँव
भूखे-प्यासे अपनी कविताओं को
जतन से सँभाले हुए
वह सन्न रह गया यह देखकर
कि इन कविताओं के बदले दुकान से
उसे नहीं मिला
एक वक़्त का भोजन
हालाँकि उसमें इतनी हिम्मत बची है
कि वह चन्द्रमा और सड़क को अपने
आँसुओं से कुचलते हुए
कविताओं की क़ीमत पर
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