तालाबन्दी - 2
काव्य साहित्य | कविता डॉ. महेश आलोक1 Jul 2020
एक मज़दूर ने मज़दूरों के शोषण पर
लिखीं तमाम कविताएँ
उसने रोटी पर कविताएँ लिखीं
लिखीं भूख पर
अब वह लौट रहा है अपने गाँव
भूखे-प्यासे अपनी कविताओं को
जतन से सँभाले हुए
वह सन्न रह गया यह देखकर
कि इन कविताओं के बदले दुकान से
उसे नहीं मिला
एक वक़्त का भोजन
हालाँकि उसमें इतनी हिम्मत बची है
कि वह चन्द्रमा और सड़क को अपने
आँसुओं से कुचलते हुए
कविताओं की क़ीमत पर
लिख सके कविताएँ
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