अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

तन्हा सफ़र

गिर गिर के हमें सँभलना,आया है दोस्तो
ये यूँ ही नहीं, भाया है दोस्तो

 

इस दिल ने जब भी माँगी हैं, मासूम तमन्नाएँ
क़ैद-ए-फ़र्ज़ में ख़ुद को, घिरा पाया है दोस्तो

 

मेरे साथ जो चलता रहा, बन कर हमक़दम
कोई साथी नहीं, वो मेरा ही साया है दोस्तो


 झुलसा सकी ना, संघर्ष की धूप भी उसको
मेरे गुंचे1 पर, बूढ़े दरख्तों का साया है दोस्तो

 

मंझधार से निकल, सफ़ीना2, आ लगा किनारे
ख़ुदा का हाथ, जब हाथ में, आया है दोस्तो 

 

चले हैं नई राह पर, नक़्श-ऐ-पा3 के बगैर हम 
इस मंज़िल का मज़ा, तभी तो आया है दोस्तो 

 

ख़ुश क़िस्मत हमको अब कहने लगे रक़ीब4 भी
हमारे दर्द हैं पोशीदा5, निशात6 नुमाया7 है दोस्तो

 

1. गुंचा= कली; 2. सफ़ीना=नाव, किश्ती; 3. नक़्श-ऐ-पा=पद-चिह्न; 4. रक़ीब=प्रतिद्वंद्वी; 5. पोशीदा= छुपा हुआ; 6. निशात= हर्ष, ख़ुशी; 7. नुमाया= प्रकट

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

1984 का पंजाब
|

शाम ढले अक्सर ज़ुल्म के साये को छत से उतरते…

 हम उठे तो जग उठा
|

हम उठे तो जग उठा, सो गए तो रात है, लगता…

अंगारे गीले राख से
|

वो जो बिछे थे हर तरफ़  काँटे मिरी राहों…

अच्छा लगा
|

तेरा ज़िंदगी में आना, अच्छा लगा  हँसना,…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

नज़्म

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं