तन्हाई (मांडवी सिंह)
काव्य साहित्य | कविता मांडवी सिंह1 Dec 2019 (अंक: 145, प्रथम, 2019 में प्रकाशित)
मैंने भटकते देखा है
मेरी तन्हाई को तन्हा कहीं
मेरी ख़ामोशी में ख़ामोशी कम
तेरी यादें ज़्यादा हैं।
क्यों ना हो
हाथों कि लकीरें बेबस मेरी
मेरे हिस्से ये ज़मीं कम
वो आसमां ज़्यादा है।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं