तर्क ए वफ़ा
शायरी | ग़ज़ल अंजुम कानपुरी30 Sep 2014
नफ़रतों के शहर में न ए वफ़ा रख।
उठ जाए कभी दर्द तो दिल में दबा रख।
ज़ख्म दे तुझे सनम चुप रह क़ुबूल कर।
आ जाये शर्म उनको तूँ ऐसा सिला रख।
संगदिल है ग़र जहां कह के करेगा क्या।
छोड़ के सवाल दिल दिल से मिला रख।
इस दौर में ज़िरह भी बे-मानी है अंजुम।
ख़ूबी पे नज़र रख औ जुबां पे दुआ रख।
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