तेरी साँसों की महक
काव्य साहित्य | कविता किशन नेगी 'एकांत'1 Jun 2019
तेरी गर्म साँसों की महक से
मुरझाये ख़्वाब खिलने लगे हैं
ख़्वाब जो बिछुड़ गए थे कल
वो फिर से आज मिलने लगे हैं
तेरे नयनों से घायल हुआ जहाँ
वहाँ क़दम मेरे फिसलने लगे हैं
तेरे तड़पते दिल की तपिश में
हिम-शिखर भी पिघलने लगे हैं
तेरे चन्दन बदन की ख़ुशबू से
रूठी फ़िज़ा भी महकने लगी है
तेरे क़दमों की हर आहट से
बेसुध भोर भी चहकने लगी है
सावन में बहके यौवन को देख
बेताब नीलाम्बर चूमने लगा है
मदहोश आखों की मदिरा से
तेरा दीवाना भी झूमने लगा है
सुनकर तेरी पायल की झंकार
मन के टूटे तार मचलने लगे हैं
शरद ऋतु के रंग में रँगी है तू
काले बादल रंग बदलने लगे हैं
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