ठहराव
काव्य साहित्य | कविता राहुलदेव गौतम15 Jan 2020
मेरी मोहब्बत के अंदाज़ का
तुम्हें अंदाज़ा भी नहीं था,
बस इश्क़ मिजाज़ी से
इश्क़ हक़ीक़ी तक जाना था।
हम कोट पहनकर..
ठंड से दुबके हुए जा रहे है।
वो मासूम कितना ज़िद्दी था..
माँ के आँचल में,
जाड़े की रात काटे जा रहा था।
लाइलाज होते हैं कई घाव
अपनों के धोखे
अपनों की ख़ामोशियाँ।
क़िस्मत क्या होती है..
आज मुझे यक़ीन हो गया
एक बेबस माँ..
एक मासूम को जन्म दिया
फ़ुटपाथ पर..।
एक कारवां आया था
मेरी आँखों के सामने से,
सब कुछ ले गया
सिर्फ़ मुझे छोड़ कर...।
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