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टॉप का सौदा

सर्दी की खिली धूप की मादकता का लुत्फ़ उठाता बबलू दुकान के मुहाने पर खड़ा कॉलेज जाती बालाओं को घूर रहा है। अभी-अभी खैनी मथकर उसने ऊपर के होंठ के नीचे दबाई है। जब खैनी का सुरूर उसके दिमाग़ में चढ़ता है तो वह आँखे बंद कर लेता है। लेकिन जैसे ही कॉलेज जाती हुई किसी लड़की को देखता है, उसकी आँखे क्षमता से अधिक खुल जाती है।

अपनी एक एक्स-गर्लफ्रेंड "मुस्कान" के नाम पर उसने दुकान का नाम भी "मुस्कान हैयर कटिंग" रखा हुआ है। किसी दूसरे की हो चुकी मुस्कान के बारे में जब कभी वह डूबकर सोचता है तो भावनाओं का उमड़ा सैलाब, पत्थरों को फोड़कर निकलने वाले झरने के समान आँखों से आँसुओं के रूप मे बहने लगता है। मुस्कान की याद मिटाने के लिये वह हर संभव प्रयत्न कर रहा है कि कोई नई चिड़िया उसके जाल मे फँस जाये। इसलिए जब भी कोई कुड़ी-कुँवारी देखता है तो तुरंत दिल का ब्लूट्रथ ऑन कर लेता है कि उस नवयौवना बाला के इश्क़ का डाटा उसे मिल जाए। 

आज जब गर्मियों की छुट्टियों के बाद कॉलेज खुला है तो प्रति दो–तीन मिनट बाद, दो–चार बालाओं का समूह कंधों पर बैग टाँगे या पुस्तकें हाथ में दबाए उसकी दुकान के सामने से गुज़र रहा है। बबलू उन पर लाइन मारने का कोई भी मौक़ा हाथ से जाने नहीं देना चाहता। अत: जब भी कोई बालिका समूह दिखता है, बबलू किसी एक बालिका पर नज़र गड़ा कर जोश मे जावेद से कहता है- "देख. . .यार . . .जल्दी देख, क्या टॉप का सौदा आ रहा है, क़सम से एकदम परी है परी।" 

जबकि जावेद बबलू से कई बार आग्रह कर चुका है, "यार, सौदा फिर देख लेना, पहले कटिंग कर दे, मुझे भी कॉलेज जाना है।" लेकिन 9 से 10 बजे के बीच बबलू कटिंग नहीं करता। इस बीच किसी भी ग्राहक की शेव या कटिंग की ज़िम्मेदारी रहती है उसके सीखतड़ चेले, फरीद की। लेकिन दुर्भाग्यवश आज फरीद छुट्टी पर है। जावेद की उतावली देख कर बबलू दो बार बड़बड़ाया भी "इस साले फरीद को भी आज ही छुट्टी पर मारना था। साले को आने दो, पत्ता साफ़ कर दूँगा। पीर के दिन ही सबसे ज़्यादा सौदे कॉलेज जाते हैं। साला बताकर जाता तो कुछ और इंतज़ाम करता।" 

बबलू और जावेद अच्छी जान–पहचान वाले, एक ही मुहल्ले के निवासी और लगभग दोस्त हैं। मुहल्ले से लगभग आधा किमी दूर एस डी कॉलेज मार्ग पर बबलू की हेयर कटिंग की दुकान है। जावेद उसी कॉलेज मे बी.कॉम. का छात्र है। 

बबलू की आदत है– कॉलेज ओपनिंग के समय लड़कियों को घूरना, आहें भरना और उन्हें टॉप का सौदा कहना। जावेद उससे कई बार कह चुका है, "तुम इस तरह बदनीयत से लड़कियों को मत देखा करो और उन्हें साली व टॉप का सौदा कहना छोड़ दो।" लेकिन गंदी आदत आसानी से थोड़े ही छूटती है। महीनों से यही सिलसिला चला आ रहा है। 

एक दोपहर के समय बबलू किसी ग्राहक की कटिंग कर रहा था और जावेद दुकान के बाहर खड़ा अख़बार के पन्ने इधर-उधर पलट रहा था। जावेद ने एक सुंदर लड़की को दूर से आते देखा और तेज़ स्वर मे बोला, "बबलू, जल्दी आ, अबे यार जल्दी आ, तूने आज तक ऐसा सौदा नहीं देखा होगा– वह, क्या फिगर? क्या नागिन सी चाल? क्या क़ातिल अदा? एकदम क़यामत. . .!"

बबलू जल्दी से कटिंग छोड़कर बाहर आया। लड़की को गौर से देखा। गंभीर मुद्रा मे बोला –"यार, ये तो मेरी बहन है।" 
"तो साले, जिन्हें तू बदनज़र से घूर–घूर कर टॉप का सौदा कहता है, वे किसी की बहन या बेटी नहीं क्या?”

जावेद का तमाचे जैसा व्यंग्य सुनकर बबलू वापस दुकान मे घुसकर चुपचाप ग्राहक के बाल काटने में व्यस्त हो गया। उसके बाद वह न कभी दुकान के मुहाने पर खड़ा हुआ और न उसे कोई टॉप का सौदा दिखाई दिया।  

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