सुनामी
काव्य साहित्य | कविता डॉ. भारतेन्दु श्रीवास्तव28 Jul 2007
अरबों का विध्वंस कर,
लाखों के प्राण पीकर,
किस आतंकवादी की हो अनुगामी?
रूप लिया एक भयंकर,
बन समुद्री भीषण लहर,
मानवता भयभीत करने की भरी हामी,
क्यों लिया मारने का व्रत?
और किया इतना हिंसक कृत?
किस ऋण का था मानव तुम्हारा असामी?
हुआ इंडोनेशिया पास भूकंपन,
और तुम हुई तत्काल उत्पन्न,
और चल दीं वेग गति से हो द्रुतगामी,
थायलैंड, श्री लंका, हमारा भारत,
और इंडोनेशिया आदि करने त्रस्त,
तुम्हारी तो होनी चाहिए खूब ही बदनामी,
परंतु देखो सारा जग कराह रहा,
लेकिन साथ में कहता भी जा रहा,
दिसंबर 26, 2004 को आई सुनामी,
हिन्दी शब्द कोश हो गया मुहताज,
जापानी शब्द का पहनकर ताज,
हो तुम ’भारतेन्दु’ प्राकृतिक तरंग बेनामी,
करो न तुम अब अत्यधिक अभिमान,
वैज्ञानिकों को हो गया तुम्हारा भान,
उपस्कर बनेंगे जो देंगे सूचना तब आगामी,
तब तक ईश्वर से मेरी यह विनय,
होने न देना इसका हिन्द महासागर में उदय,
जब तक यंत्र न लगें देते हुए सूचना पूर्वगामी।
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