सुनामी
काव्य साहित्य | कविता अलका प्रमोद3 May 2012
आगत में स्वागत में रत उत्साहित था यह संसार,
मन में थे संकल्प अनेक, रोम रोम में नव संसार।
धरती ने जो ली अंगडाई, आया जग में इक भूचाल,
सुनामी की चली तरंगें, जीवन की बन ग्राही काल।
जाते जाते क्यूँ दे गया, गत वर्ष हमको यह संत्रास,
बिछड़े परिजन टूटे घर सब, हुआ अनेकों जन का ह्रास।
देख रहे थे छटा निराली, बिखरा सिकता सोना तट पर,
न जाने क्यूँ मचला करने, तांडव मतवाला ये सागर।
चारों ओर था अंधकार, मचा हुआ था हाहाकार,
पर भोली गुड़िया पर फिर भी, आया था सागर को प्यार।
उठा उसे बाहों में अपनी, बचा लिया यूँ सागर ने,
मानों कहता हो सागर से समझो छिपा भेद इसमें।
जीवन में आएँगे यूँ तो, नित नित जाने कितने क्लेश,
अंधकार में भी न छोड़ो, आशा है मेरा संदेश।
उठो करें स्वागत हम कल का, जीवन में हो नव संचार,
आशा की इस डोर को थामें, करना है हर बाधा पार।
सुमन समर्पित श्रद्धा के, उनको जो हो गए बह्म में लीन,
उन दुखियों के साथ हैं हम, काल ने जिनके लूटे नीड़।
नहीं हारना पुन: बनाएँगे, हम तट पर नीड़ नया,
करेंगे अभिनन्दन हम कल का, लेकर फिर संकल्प नया।
मंत्र है आशा ही जीवन का, कभी न दुख से मानों हार,
उठो साथियों दृढ़ निश्चय से, करें सृजित फिर नव संसार।।
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