तुम
काव्य साहित्य | कविता डॉ. यू. एस. आनन्द16 Jan 2009
दूर पलाश के फूलों के बीच
सूरज की एक किरण फूटी,
लगा-
अलसाई हुई सी तुम जागीं।
झरनों की कल-कल और
चिड़ियों की ‘चिक -चिक सुन
लगा-
तुमने कोई मधुर गीत गाया।
धीरे-धीरे जो चली पुरवाई
पेड़ों के पत्ते यूँ सरसराए
लगा-
तुमने शरमा के मुखड़ा छिपाया।
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