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तुम आ गयी हो

ओस बूँदों से मिलन कर 
सुरभि शीतल रूप पवन धर
आज दिनकर से भी पहले
श्वास तल तक आ गयी हो 

 

जग के बंधन स्तरों को 
पार करती मेखला सी
अपने उद्गम से पिघल कर
हृदय तल तक आ गयी हो

 

अब अनाहत नाद बन कर
ऊर्ध्व हो विश्वास बनकर
आज वेदों से भी पहले 
ज्ञान तल तक आ गयी हो

 

मोह के अज्ञान स्वर को
निष्कपट निर्लिप्त कर के
आज वीणा से भी पहले 
ब्रह्म तल तक आ गयी हो

 

नित निखरती विपश्यना में
निज, अनुभवों की साधना में 
बुद्ध के आने  से पहले
बोध तल तक आ गयी हो

 

शिखर पर भी योगनिन्द्रित 
त्याग स्व: हो कर अकिंचन
संन्यास के आने से पहले
आध्यात्म बन कर आ गयी हो
 
अब रहो तुम अनवरत 
या काल को कर दो समर्पित
आज अंत होने से पहले
अनन्त तल तक आ गयी हो

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