तुम आ गयी हो
काव्य साहित्य | कविता डॉ. अंकेश अनन्त पाण्डेय15 Aug 2019
ओस बूँदों से मिलन कर
सुरभि शीतल रूप पवन धर
आज दिनकर से भी पहले
श्वास तल तक आ गयी हो
जग के बंधन स्तरों को
पार करती मेखला सी
अपने उद्गम से पिघल कर
हृदय तल तक आ गयी हो
अब अनाहत नाद बन कर
ऊर्ध्व हो विश्वास बनकर
आज वेदों से भी पहले
ज्ञान तल तक आ गयी हो
मोह के अज्ञान स्वर को
निष्कपट निर्लिप्त कर के
आज वीणा से भी पहले
ब्रह्म तल तक आ गयी हो
नित निखरती विपश्यना में
निज, अनुभवों की साधना में
बुद्ध के आने से पहले
बोध तल तक आ गयी हो
शिखर पर भी योगनिन्द्रित
त्याग स्व: हो कर अकिंचन
संन्यास के आने से पहले
आध्यात्म बन कर आ गयी हो
अब रहो तुम अनवरत
या काल को कर दो समर्पित
आज अंत होने से पहले
अनन्त तल तक आ गयी हो
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