तुम हो
काव्य साहित्य | कविता विवेक कुमार झा29 Apr 2016
तुम्हारी हँसी
जैसे खेतों की मेड़ों पर पानी की छुल-छुल
तुम्हारी बोली
नदियों की धरा जो बहती है कल-कल
तुम्हारा चेहरा
जैसे ओस की बूँदे हों घास पर चक-मक
तुम्हारा ग़ुस्सा
बारिश की बूँदों का छत से हो टप-टप
तुम्हारा व्यवहार
पानी की छिड़कन से कलियों का खिल-खिल
तुम्हारा प्यार
जैसे संगम में नदियों की धारा की हिल-मिल
तुम्हारी तक़रार
नाविक के चप्पू का जल में छपाक
तुम हो
बालू पर बहती हुई लहरों सी साफ़।
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