तुम ख़्वाब बुनों, मैं ख़्वाब बनूँ,
काव्य साहित्य | कविता हेमंत कुमार मेहरा1 Nov 2019
तुम ख़्वाब बुनों, मैं ख़्वाब बनूँ,
ये कितना अच्छा होगा,
तुम साथ चलो मैं, साथ रहूँ,
ये कितना अच्छा होगा॥
तुम,
तुम बनकर जी पाओ तो,
मैं,
मैं बन कर के जी लूँ,
तुम साया बन जाना दो दिन ये,
ये कितना अच्छा होगा॥
ज़रा सँभल जाना तो देखो,
देखो शाम सुहानी,
देखो पतझड़,
देखो सावन,
देखो बाद जवानी,
बस तू होगी,
बस मैं होगा
वो वक़्त हिफाज़त कर लें,
या यूँ कर लें,
चल,
चल आ लड़ लें,
और दूर ही कर दें ख़ुद को,
तुम ख़्वाब बुनों, मैं ख़्वाब बनूँ,
ये कितना अच्छा होगा,
तुम साथ चलो मैं, साथ रहूँ,
ये कितना अच्छा होगा॥
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