तुम मेरा प्राण दीपक मैं तेरा आशियाना
काव्य साहित्य | कविता हर्यंक 'प्रांजल'18 Jan 2019
तुम मेरा प्राण दीपक मैं तेरा आशियाना
चल साथ में चलेंगे हमको जहाँ है जाना
टूटा हुआ हृदय था जब तुम मुझे मिली थी
पीड़ा का वो समय था जब तुम मुझे मिली थी
जीवन असार बेरस बेरंग लग रहा था
हारा हुआ थका सा बेढंग लग रहा था
हमको लगा पराजित रह जायेंगे समर में
और हम ठगे ठगे से बह जायेंगे भँवर में
लेकिन विधि में मेरी कुछ और ही लिखा था
सतरंगी वो धनुष जो तुमने मुझे दिखाया
विधि का विधान तब ही मेरी समझ में आया
तुम मेरा प्राण दीपक मैं तेरा आशियाना
चल साथ में चलेंगे हमको जहाँ है जाना॥
फिर से धवल किया था तुमने मेरे हृदय को
रस रंग भर खिला था मेरा हृदय धवल हो
कितने समर लड़े थे हमने समीप रहकर
और तब कहीं मिला था जीवन का ये समर्पण
मेरे लिए ख़ुशी से तुमने किये असीमित
बलिदान है वो साक्षी तेरे प्रेम के जो जीवित
मैं स्वप्न में भी उनको भूला नहीं कभी हूँ
तुम मुझको माफ़ करना मैंने कष्ट जो दिए हैं
मेरे प्राण की अनवरत श्वासें तेरे लिए हैं
तुम मेरा प्राण दीपक मैं तेरा आशियाना
चल साथ में चलेंगे हमको जहाँ है जाना॥
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