तुम मुझे पहचान लेना
काव्य साहित्य | कविता भुवन पांडे27 Oct 2018
मैं रहूँगा क़रीब तुम्हारे
बस तुम मुझे पहचान लेना
भोर के उजास में
दबे पैर तुम्हारे सिराहने आ
उषा की स्नेहिल किरणों से तुम्हें
स्पर्श करूँ तो मुझे पहचान लेना
मंद मंद बयार में
अपनी साँसें भर भेज दूँगा
सुरभि तुम उसमें
मेरी पहचान लेना
पंछियों के सुर में
अपने स्वर भेज दूँगा
कलरव में उनके
तुम मुझे पहचान लेना
साँझ को छुपते रवि की
लालिमा में रंग कुछ अपने भर
नभ में फैल जाऊँगा
रंग मेरा तुम उसमें पहचान लेना
और रात को भेज दूँगा तारों में
अपनी सारी ज्योत, प्यार सारा
भर टिमटिम को उनकी -
स्वप्निल नयनों में अपने
नींदों में अपनी, तुम मुझे पहचान लेना
मैं रहूँगा क़रीब तुम्हारे
बस तुम मुझे पहचान लेना
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