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तुम्हारे न होने से

समीक्ष्य पुस्तक: तुम्हारे न होने से
कवि/लेखक: डॉ. जीवन एस रजक
प्रकाशक: इंद्रा पब्लिशिंग हाउस
मूल्य २९५

इस दुनिया में हर व्यक्ति ने कभी न कभी किसी न किसी  जगह, किसी न किसी से प्रेम ज़रूर किया होगा। बस ख़ुश किस्मत कुछ लोग होते हैं जिन्हें उनको उनका प्यार मिल जाता है।

ठीक ही कहा है किसी ने, "जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को प्यार मिला" हर किसी के प्यार होने की कहानी अलग होती। प्यार के बिछड़ने की भी कहानी अलग  होती है। पर प्यार के बिछड़ने  की वेदना, विरह, पीड़ा सबकी एक समान होती है। यहाँ उपजी कविता, प्यार के होने से नहीं। "प्यार के न होने से" है; संग्रह में कवि ने प्यार के न होने से लिखा है—

"तुम्हारे बिना 
मैं किसी पेड़ से गिरे पत्ते की तरह 
बिल्कुल अकेला हो जाऊँगा
और धीरे-धीरे सूखकर
मिल जाऊँगा मिट्टी में"

कविताओं को पढ़ कर ऐसा महसूस किया जा सकता है कि कभी न कभी कवि ने भी प्रेम  की विरह को झेला होगा। महाकवि सुमित्रानंदन पंत के शब्दों में "योगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा गान निकलकर आँखों से चुपचाप, बही होगी कविता अनजान।" कविता के इन मापदंडों पर जीवन रजक जी की कविताएँ पूरी तरह से सफल हैं। इस कविता संग्रह में 76 कविताएँ हैं जो विरह के दौरान प्रेमी के हृदय और मानस का दर्पण है। इसमें वियोग की भावुकता है, प्रेम का उत्कर्ष है, तो मिलन की आशा भी है—

"तुम मुझे मिलोगी ज़रूर
कब, कहाँ, कैसे पता नहीं 
शायद मेरी कल्पना की प्रेरणा बनकर 
या अंतिम प्रहर के स्वप्न में
 
मुझे यक़ीन है 
तुम एक दिन आओगी 
और ज़िंदगी के कैनवास पर 
बना दोगी अपनी एक प्रतिछाया"

कवि की भाषा प्रांजल है, सरल है। भाषा में प्रवाह है। विशेष बात यह है कि जहाँ एक ओर सीधे-सपाट शब्दों में  कही गई है वहीं दूसरी ओर अतुकांत कविता का माधुर्य बरक़रार रखा गया है। कहीं भी अपने पांडित्य प्रदर्शन लालसा नहीं है।

जीवन एस रजक  कवि (डिप्टी कलेक्टर) बड़े मीठे अत्यन्त मृदु व्यवहार के इंसान हैं और उनके प्रशासन के भीतर का आदमी अभी जीवित है।

"प्रेम
कोई कोई गणितीय समीकरण नहीं है जिसे किया जा सके हल 
किसी पाइथागोरस के फार्मूले से
प्रेम
कोई वैज्ञानिक निष्कर्ष नहीं है जो हो सके प्रमाणित
किसी मेंडल या न्यूटन के नियम से।
प्रेम 
कोई समाजशास्त्रीय सिद्धांत भी नहीं है बाँधा जा सके जिसे  
अवतरण चिह्नों से किसी दुर्खीम या मजूमदार की परिभाषा में"

हर इंसान सच्चा प्रेम करना चाहता है सच्चे प्रेम को पाना चाहता है और सबसे कठिन होता है सच्चा प्रेम। इस संग्रह की एक कविता है।  

"सबसे कठिन होता है सच्चा प्रेम
पत्थर पर बीच का अंकुरण सबसे कठिन नहीं होता
रस्सी का फंदा गले में डालकर 
मर जाना सबसे कठिन नहीं होता
तैरने में प्रवीण होने पर भी दरिया में कूदना और 
बचकर पार हो जाना मुश्किल तो है 
मगर सबसे कठिन नहीं होता
सबसे कठिन होता है 
किसी से सच्चा प्रेम करना और 
उसे उम्र भर निभाना......."

अंत में फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ साहब की एक बात से ख़त्म करना चाहूँगा।

"वो लोग बहुत ख़ुश-क़िस्मत थे 
जो इश्क़ को काम समझते थे 
या काम से आशिक़ी करते थे 
हम जीते-जी मसरूफ़ रहे 
कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया 
काम इश्क़ के आड़े आता रहा 
और इश्क़ से काम उलझता रहा 
फिर आख़िर तंग आ कर हम ने 
दोनों को अधूरा छोड़ दिया।"
 

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