टूटी डोर
कथा साहित्य | लोक कथा सुधा भार्गव23 Feb 2019
एक राजा था। उसका पुरोहित बहुत होशियार था। सारे धार्मिक काम वही कराता था। एक बार राजा ने प्रसन्न होकर सजा–सजाया घोड़ा उसे भेंट किया। वह जब भी उस पर बैठकर राजा के दरबार में जाता, लोग घोड़े की प्रशंसा किए न अघाते। इससे वह खिला-खिला रहता। एक दिन उसने बड़े सरल भाव से अपनी पत्नी से कहा, "सब लोग हमारे घोड़े की सुंदरता का बखान करते हैं। उस जैसा दूसरा कोई घोड़ा नहीं।"
पत्नी ठीक अपने पति के विपरीत थी। उसके हृदय छल–लपट से भरा हुआ था। अपने पति की भी सगी न थी। वह हँसते हुए बोली – "घोड़ा तो अपने साज–शृंगार के कारण सुंदर लगता है। उसकी पीठ पर लाल मखमली गद्दी है। माथे पर रत्न जड़ी पट्टी और गले में मूँगे-मोतियों की माला।
तुम भी उसकी तरह सुंदर लग सकते हो और तुम्हें प्रशंसा भी खूब मिलेगी अगर उसी का साज पहन लो और घोड़ी की तरह घूमते–इठलाते कदम पर कदम रखो।"
पत्नी की बात का विश्वास करके उसने वैसा ही किया और कमर पर गद्दी, माथे पर पट्टी और गले में माला पहनकर घोड़े की तरह हिनहिनाता–ठकठक करता राजा से मिलने चल दिया। रास्ते में जो–जो उसे देखता – हँसते–हँसते दुहरा हो जाता और कहता – "वाह पुरोहित जी क्या कहने आपकी शान के, सूरज की तरह चमक रहे हैं।"
राजा तो पुरोहित को देख बौखला उठे – "अरे ब्राह्मन देवता – तुम पर पागलपन का दौरा पड़ गया है क्या? घोड़े की तरह हिनहिनाते – चलते शर्म नहीं आ रही! सब लोग तुम्हारा मज़ाक उड़ा रहे हैं। अपना मज़ाक उड़वाने का अच्छा तरीका ढूँढ निकाला है।"
जी को काटो तो खून नहीं। उन्हें तो कल्पना भी नहीं थी कि जिस औरत को वे अपने प्राणों से भी ज़्यादा चाहते हैं वह उनकी इज़्ज़त के साथ ऐसा खिलवाड़ करेगी। वे अंदर ही अंदर उबाल खा रहे थे।
मझते देर न लगी कि बेचारा पुरोहित अपनी पत्नी के हाथों मारा गया।
उसको शांत करते हुए बोले- "औरत से गलती हो ही जाती है। उसे क्षमा कर दो। रिश्तों की डोर को तोड़ने से कोई लाभ नहीं। दरार पड़ते ही उसे जोड़ देना चाहिए।"
"महाराज, एक बार डोर टूटने से जुड़ती नहीं, अगर जुड़ भी गई तो निशान तो छोड़ ही जाती है। अपनी पत्नी के साथ रहते हुए मैं कभी भूल नहीं पाऊँगा कि उसने मेरा विश्वास तोड़ा है और इस बात की भी क्या गारंटी कि वह भविष्य में मेरा मज़ाक उडाकर अपमानित नहीं करेगी। ऐसी औरत के साथ न रहना ही अच्छा है।"
पुरोहित की बात ठीक ही लगी। कुछ दिनों के बाद उसने दूसरी औरत से शादी कर ली और पहली पत्नी को घर से निकाल दिया।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
डायरी
- 01 - कनाडा सफ़र के अजब अनूठे रंग
- 02 - ओ.के. (o.k) की मार
- 03 - ऊँची दुकान फीका पकवान
- 04 - कनाडा एयरपोर्ट
- 05 - बेबी शॉवर डे
- 06 - पतझड़ से किनारा
- 07 - मिसेज़ खान का संघर्ष
- 08 - शिशुपालन कक्षाएँ
- 09 - वह लाल गुलाबी मुखड़ेवाली
- 10 - पूरी-अधूरी रेखाएँ
- 11 - अली इस्माएल अब्बास
- 12 - दर्पण
- 13 - फूल सा फ़रिश्ता
- 14 - स्वागत की वे लड़ियाँ
- 15 - नाट्य उत्सव “अरंगेत्रम”
- 16 - परम्पराएँ
- 17 - मातृत्व की पुकार
- 18 - विकास की सीढ़ियाँ
- 19 - कनेडियन माली
- 20 - छुट्टी का आनंद
- 21 - ट्यूलिप उत्सव
- 22 - किंग
- 23 - अनोखी बच्चा पार्टी
- 24 - शावर पर शावर
- 25 - पितृ दिवस
- 26 - अबूझ पहेली
- 27 - दर्द के तेवर
- 28 - विदेशी बहू
- 29 - फिलीपी झील
- 30 - म्यूज़िक सिस्टम
- 31 - अपनी भाषा अपने रंग
- 32 - न्यूयोर्क की सैर भाग- 1
- 33 - न्यूयार्क की सैर भाग-2
- 34 - न्यूयार्क की सैर भाग - 3
- 35 - न्यूयार्क की सैर भाग - 4
- 36 - शिशुओं की मेल मुलाक़ात
- 37 - अब तो जाना है
- 38 - साहित्य चर्चा
- 39 - चित्रकार का आकाश
- 40 - काव्य गोष्ठी
लोक कथा
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं