अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

उड़ान संख्या 2020 

इन्टरनेट पर मैंने ख़रीदा यात्रा टिकट 
शायद दूसरी तरफ़ एक रोबोट बैठा था, 
कृत्रिम बुद्धि का सौदागर, सर्वज्ञान संपन्न  
डिजिटल युग का स्वामीl  
 
“मेरा समय होगा 31 दिसम्बर की समाप्ति 
अर्थात रात के बारह बजे – 24.00 घंटा।” 
“महाशय, 24.00 घंटा मेरी स्मृति में नहीं है 
क्या आपका मतलब 00.00 घंटा से है?” 
“नहीं, 00.00 घंटा का अर्थ है दिन की शुरुवात 
लेकिन मुझे जाना है दिन के ठीक अन्त पर, 
अपने अधिकारी से कहो इसका समाधान करे 
एटॉमिक घड़ी के युग में शुद्धता आवश्यक है।” 
 
“हाँ महाशय, मैं ज़रूर कहूँगा 
अब अपने सामान के विषय में बतलाएँ 
कितने किलोग्राम?” 
“शून्य किलोग्राम – यह मेरे टिकट पर लिख दो 
अन्यथा मुझे सामान रहित कहेंगे!” 
 
“मैंने आजतक ऐसा नहीं सुना 
इस सामान के अन्दर कौन सी वस्तुएँ हैं? 
आप जैसे यात्री तो विशेष पुरस्कार के योग्य हैं 
हवाई जहाज़ का ईंधन बचाकर प्रदूषण कम करते हैं।” 
 
“मेरे सामान में शामिल है 
सद्भावना, प्रेम, और मधुर अनुभव 
जिसे तौलने के लिए कोई तराजू नहीं है। 
मैंने विषाद, ईर्ष्या, और दुखद क्षणों जैसी 
भारी वस्तुओं को पीछे छोड़ दिया है।” 
 
कुछ सेकंड की रहस्यमयी चुप्पी के बाद 
कंप्यूटर पुनः जीवित हो उठा: 
“यद्यपि आपकी वस्तुएँ हमारे डेटाबेस में नहीं हैं 
विशेष अनुमति से उनकी स्वीकृति मिल गई है। 
अब बताएँ, आपके केबिन बैग में क्या है? 
“किताबें, तथा लम्बी यात्रा के लिए 
थोड़ा काजू, पिस्ता, और बादाम।” 
 
तभी कंप्यूटर से उच्च स्वर में आवाज़ आई 
“क्या आप पागल हैं? 
या कोई कवि हैं? या दार्शनिक लेखक हैं? 
आजकल किताबें तो स्मार्टफोन में आती हैं 
यदि गर्लफ़्रेंड या पत्नी के लिए उपहार ले जाएँ 
तो ज़िन्दगी मधुर होगी।” 
 
ऐसे निर्भीक सुझाव पर चकित होकर 
मैंने भी एक व्याख्यान दे डाला: 
“ऐतिहासिक वैभव के लिए 
आजकल भूगर्भ विज्ञानी ज़मीन खोद रहे हैं 
एक दिन वे हमारी किताबें भी खोजेंगे। 
मानव समकक्ष बुद्धि होने पर 
तुम्हारे जैसे रोबोट भी उन्हें ‘बादलों’1 में खोजोगे।” 
 
शीघ्र ही कंप्यूटर पूछ बैठा: 
“क्या आपकी वापसी उड़ान भी होगी?” 
“हाँ, मैं लौटूँगा 
ऐसी ही उड़ान संख्या 2021 से 
चूँकि दुनिया दुर्भाग्य ग्रस्त है, कोरोना का प्रकोप है 
जीवन अनिश्चित है और समय लम्बा है,  
सामान के वज़न का पूर्वानुमान मुश्किल है। 
यदि भगवान् की कृपा रही 
तो वह पुनः शून्य किलोग्राम रहेगा।” 
 
एक आख़िरी सवाल: 
“क्या आपने यात्रा बीमा ख़रीद लिया है?
अभी ख़रीदने पर चालीस प्रतिशत की छूट है।” 
“वह राशि कोरोना का टीका  ख़रीदने में काम आएगी  
अन्यथा मेरी वापसी भी अनिश्चित होगी। 
एक अनुरोध है 
यदि मैं कोरोना-वायरस का भोजन बन गया 
तो वापसी टिकट की राशि ‘रेड क्रॉस’ को भेज देना।” 

1. ‘बादल’ - cloud computing का सांकेतिक प्रयोग)    
(आंशिक रूप से मेरी किताब ‘कविता सागर’ २०१७ से उद्धृत।) 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

अतिथि
|

महीने की थी अन्तिम तिथि,  घर में आए…

अथ स्वरुचिभोज प्लेट व्यथा
|

सलाद, दही बड़े, रसगुल्ले, जलेबी, पकौड़े, रायता,…

अनंत से लॉकडाउन तक
|

क्या लॉकडाउन के वक़्त के क़ायदे बताऊँ मैं? …

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

हास्य-व्यंग्य कविता

एकांकी

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं