उफ़! ये बच्चे
काव्य साहित्य | कविता विमला भंडारी14 Mar 2015
बच्चे बैठा करते थे
दादी नानी की गोद में
दुबककर / पर अब ?
धँसे हुए है सोफे में
चिपके हैं टीवी से
बच्चे खेला करते थे
कंचे, गुल्ली डंडे से
जमकर / पर अब ?
दौड़ाते है रेस की कार
वीडियो गेम के झाँसे में
बच्चे रोया करते थे
न मिलने पर कुल्फी
ठुनककर / पर अब ?
निकाल लेते है पिस्तौल
पिज़्ज़ा बर्गर पाने के लिए
बच्चे डरा करते थे
स्कूल जाने के नाम से
पर अब / ले जाते है चाकू ?
कॉपी किताब बस्ते के नाम पर
बच्चे करते है वो सब
जो नहीं करा करते थे बच्चे
चोरी-डकैती, बलात्कार
अपराध में लिप्त हैं
बच्चे, नहीं रहे आज के बच्चे...
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