उम्मीद (सरिता यादव)
काव्य साहित्य | कविता सरिता यादव1 Dec 2019 (अंक: 145, प्रथम, 2019 में प्रकाशित)
न चाहतों की क़वायद
न मिलन के सिलसिले।
बहुत दूर आ गये अब,
कोई हमसे न मिले।
यही सोच रहे हैं कि
हवा न अब उनकी लगे।
जिस दरीचे को हम सहमे,
बचने को उन्हीं से
इस दरमिया आ सिमटे।
बस बहुत हुआ
कोई हमसे न मिले।
दिया जो जला
लाग उनकी लगी थीं।
लौ को बुझाकर
अब मिट चुकी हूँ।
बस बहुत हुआ अब
कोई हमसे न मिले।
देख कर जिनको
हर वक़्त मुस्कराती,
जिनकी चाहत में
डूबकर खो जाती।
उस दिल से ओझल
होकर बुझ चुकी हूँ।
ख़ामोशियों के आगोश में,
आ कब की सिमट चुकी!
इस दिल को समझा।
मैं कब की मिट चुकी हूँ!
बस बहुत हुआ अब
कोई हमसे न मिले।
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