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उनका न्यू मोटर वीइकल क़ानून

इधर नया मोटर वीइकल नियम आया तो उधर मेरे पड़ोसी के बारह हज़ार के स्कूटर का पच्चीस हज़ार का चालान हो गया। वह रोता हुआ चालान के पैसे चुकाने बारे मुझसे उधारी करने शाम को रोता हुआ अपुन के घर आया तो मैंने उससे पूछा, “क्या बीवी रूठ कर फिर मायके चली गई?” उसकी बीवी की ये ख़ासियत यह है कि वह जब रूठती है तो उसे बिन बताए मायके चली जाती है। और मेरी बीवी की ख़ासियत ये है कि वह जब रूठती है तो घर के सारे काम मुझसे करवाती है।

"नहीं! मंदी के दौर में उसके मायके वालों ने उसे मायके आने से मना कर दिया है। उन्होंने साफ़ कह दिया है जब तक मंदी है सरकार के ही पड़े रहो।"

"तो??"

"चालान हो गया। पच्चीस हज़ार का!"

"पच्चीस हज़ार का! किसका?" 

"स्कूटर का।"

"मतलब??"

"हाँ अंकलजान! बीवी साथ थी पर शादी के काग़ज़ नहीं थे। पुलिस वाले ने स्कूटर का चालान कर दिया। बारह हज़ार का स्कूटर तो उनके चालान में आधे में उनको दे आया। अब तेरह हज़ार बाक़ी देने हैं, सो अगर... मुझे पहली तक उधार दे दो तो...," कह उसने जो सूरत बनाई वह देखने लायक़ नहीं थी।

"तो मुझे फोन क्यों नहीं किया? अपने दोस्त इंस्पैक्टर मातादीन से फोन-फुन करवा हज़ार पाँच सौ करवा देता। वैसे ये तो हद है यार! शादीशुदा के साथ प्रेमिका होने पर तो चालान कटते सुने थे पर अब बीवी के साथ भी? जो ऐसा ही चलता रहा तो बीवी को भी स्कूटी पर बैठाना मुश्किल हो जाएगा अब मेरे दोस्त। अब तुम ही कहो हे मेरे देश के क़ानूनदानों! ऐसे में कोई भी बेचारा शादी-शुदा किस पिछली के सहारे रिस्की स्कूटर चलाएगा?" मैंने उसके हुए चालान के प्रति कम,अपने भविष्य के प्रति अधिक चिंतित होते कहा तो वह बोला, “फोन में बैलैंस नहीं था न! तो ऐसे फोन जेब में रखते ही क्यों हो?" 

"केवल सुनने के लिए," उसने सिसकते-सिसकते कहा और उसके बाद मेरे आगे चालान का काग़ज़ बिछा उस पर बैठकर रोने लग गया। 

.....उसके इस रोने ने मित्रो मेरे भी हाथ-पाँव फुलाकर रख दिए हैं। कल को मेरा चालान तो ख़ैर होगा नहीं। दोस्त इंस्पैक्टर मातादीन ने मेरा चालान आज तक होने भी नहीं दिया है। जब भी कहीं मुझे अपने स्कूटर के चालान का ख़तरा दिखता है तो मैं अपने दोस्त इंस्पैक्टर मातादीन को फोन कर देता हूँ। वह तत्काल चालान करने वाले को फोन कर उससे कुल चालान का आधा करवा देता है। उस आधे को चालान वाला रख लेता है और आधा मेरा बच जाता है। मतलब टोटल का आधा मेरा बच गया तो आधा उनको मिल गया। और सरकार का एक काग़ज़ बच गया। 
फिर भी जब इस नए मोटर वीइकल नियम के मुद्दे को लेकर जमा-घाटा लगाते ठंडे दिमाग़ से सोचा तो लगा कि पहले जिस आधे में सौ बचते थे, अब हज़ार लगे तो..... आधे में चार सौ का सीधा लॉस! आख़िर मैंने तय किया कि... क्यों न स्कूटर की जगह गधा ही ले लिया जाए। वैसे भी ये स्कूटर हर कहीं अड़ जाता है, साहब की तरह। फिर न पेट्रोल का झंझट, न सर्विस करवाने का टंटा। वरना अब तो स्कूटर स्टार्ट करते करते टाँगें तक थक जाती हैं। तब भी जो स्टार्ट हो गया तो ख़ुदा ख़ैर करे। 

गधे का क्या! ऑफ़िस पहुँच सारा दिन छोड़ दिया ऑफ़िस के लॉन में उसे चरने। बाहर वह चरे तो अंदर मैं। वैसे भी तो लोकतंत्र के लॉन में गधे ही तो चर रहे हैं। घोड़े तो बेचारे हाथ में डिग्रियाँ लिए इंटरव्यू के लिए लाइनों में लगे हैं।

 .....और मैंने अपनी गली के कुम्हार को अपना स्कूटर दे उससे बदले में उसका गधा ले लिया। यह देख कुम्हार हँसा भी। पर मैं चुप रहा। कल जब मेरी चाल को समझेगा साला तो अपने सिर पर अपने तो अपने, अपनी बीवी के भी हाथ धर रोएगा। 

वैसे मैं घोड़ा भी ले सकता था। पर मैंने जानबूझकर गधा ही लिया। अपने लेवल का। कई बार औरों को तो और, अपने को भी बहुत खटकता है जब घोड़े पर गधा बैठा हो। ऊपर से घोड़े पर गधा बैठा होने पर घोड़े में जो हीन भावना उत्पन्न होती है, पूछो ही मत। वैसे मैं किसी भी घोड़े की मजबूरी का फ़ायदा उठाना नहीं चाहता। बेचारों के बुरे दिन चले हैं तो इसका मतलब ये तो नहीं हो जाता कि... मैं नहीं चाहता था कि कम से कम मेरी वज़ह से किसी में हीन भावना पैदा हो। मुझे में हो जाए तो कोई ग़म नहीं।

और साहब... ज्यों ही मैं धरती को प्रदूषण से बचाने का संकल्प ले गधे पर ऑफ़िस को निकला कि पहले ही चौक पर पुलिसवाला। उसकी एक मूँछ ऊपर को तो दूसरी नीचे को। पर मैं उसे देख चौंका नहीं। वही मुझे देख कर चौंका। फिर गधे के मुँह के आगे अपने क़ानून का टूटा, रंग झड़ा डंडा लहराता बोला, “रुको!" उसका आदेश सुन मैं तो रुकना नहीं चाहता था, पर गधा रुक गया। फिर मुझे गधे से नीचे खींचते बोला, “ये क्या है?"

"गधा! क्यों, पहली बार देख रहे हो सर क्या?"

"मतलब, नए मोटर वीइकल क़ानून से बचने का नया तोड़?" वे दहाड़े तो मैंने डरते हुए पूछा, "मतलब सर?? सर! मैं इंस्पैक्टर मातादीन का इमीडिएट पड़ोसी। ये देख लो मेरी और उनकी ताज़ा खिचवाई एक साथ फोटो," मैंने सबूत के तौर पर जेब में हाथ डाला ही कि वे बड़बड़ाए, "इंस्पैक्टर दातादीन सर का कोई दोस्त नहीं। उनकी नज़रों में गधे घोड़े सब बराबर हैं। जानता हूँ! नए मोटर वीइकल अधिनियम से बचने के लिए तुमने ये तोड़ निकाला है? हे मेरे देश की जनता तुम धन्य हो! क़ानून बाद में आता है और तुम उसका तोड़ पहले निकाल लेते हो," कह उन्होंने मेरे पाँव के बदले मेरे गधे के पाँव छुए तो गधों का समाज में रुतबे का एक बार फिर पता चला, "जानते नहीं गधे पर सवार होना शास्त्रों में निषेध के साथ-साथ नए मोटर वीइकल अधिनियम का सरेआम उल्लंघन है?"

"पर सर! आप नहीं जानते कि आज के मौजूदा समय में गधे पर चलने के कितने लाभ हैं? चढ़ो तो जानो," मैंने मुस्कुराते हुए कहा तो वे गधे की तरह बिदकते बोले, "इंस्पैक्टर मातादीन के दोस्त होकर उसी के दोस्त को उल्लू बना रहे हो? शर्म आनी चाहिए तुम्हें! जानता हूँ, ये तुमने सब इसलिए किया है ताकि नए मोटर वीइकल क़ानून को ठेंगा दिखा सको। पर तुम नहीं जानते कि गधे पर सवारी करना मोटर वीइकल क़ानून की सरासर ब्रेकिंग हैं। गाड़ियों के होते हुए गधे पर सवारी करवा गधे के लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन है। इसलिए...." कहते कहते उन्होंने फटे झोले में से चालान की कापी निकाली और मेरा मुँह देखने लगे कि मैं पुरानी फ़िफ़्टी-फ़िफ़्टी वाली बात आगे बढ़ाता हूँ कि नहीं...

"गधे मोटर वीइकल अधिनियम के दायरे में आ गए सर? वे तो अभी तक लोकतंत्र के दायरे में भी नहीं आ पाए हैं, रोज़ हड़ताल, चक्का जाम करने के बाद भी।"

"देखो, सड़क नया मोटर वीइकल अधिनियम लागू होने के बाद पर जो भी सड़क पर क़ानून तोड़ता चलेगा, वह मोटर वीइकल अधिनियम के ज़द में आकर ही रहेगा। उसे कोई नहीं बचा सकता। मैं देश के प्रधानमंत्री की भी नहीं सुनता। नहीं पता तो सुन लो। मैं जो कहता हूँ वह करता भी हूँ। मेरी ज़ुबान ही न्यू मोटर वीइकल क़ानून है। मुझे किसी क़ानून को पढ़ने की ज़रूरत नहीं। पिछले तीस साल से सफलतापूर्वक पूरे चालान के आधे ले रहा हूँ। दिखाओ, गधा ड्राइविंग लाइसेंस है क्या?" अब मैं समझ गया था कि ग़लती से जो कोई मंदबुद्धि, दिमाग़ वाले ऊँचे पद पर जैसे-कैसे पहुँच जाए तो उसे समझाने का मतलब है सीधे-सीधे अपने दिमाग़ पर कुल्हाड़ी मारना। 

मैं धीरे-धीरे दूसरे लक्ष्य की ओर चला, "सर! एसपी रेंक के इंस्पैंक्टर होने के बाद भी आप... गधा ड्राइविंग लाइसेंस?"

"हाँ! बड़े उस्ताद बने फिरते हो न अपने को? गधा ड्राइविंग लाइसेंस है क्या? नहीं न? इसकी इंश्योरेंस कहाँ है? और पोलूशन सर्टिफिकेट? पोलूशन चेक करवाया है क्या इसका और अपना?"

"वह तो अपने देश में किसीने नहीं करवाया आज तक सर! सब बस, चले जा रहे हैं," मैंने कहा तो वे पता नहीं क्यों ग़ुस्साए, "पुलिसवाले के साथ नॉन सिरियस टाक? मिसबिहेव विद इंस्पैक्टर मातादीन के दोस्त के साथ? वह भी उसके दोस्त के हाथों? तुम लोगों की चालाकी हम पुलिस ख़ूब समझते हैं। फाइन से बचने के लिए ऐसे ऐसे फंडे निकालते हो कि.... अब से सड़क पर हर गधा ड्राइव करने वाले का भी उसके पास गधा ड्राइविंग लाइसेंस न होने पर चालान होगा, फ़ाइनल तो फ़ाइनल। इंस्पैक्टर मातादीन के दोस्त सीनियर इंस्पैक्टर दातादीन सर ने कह दिया तो बस कह दिया। मेरे कहते ही समझो, नया मोटर वीइकल क़ानून लागू हो गया। सरकार जब लागू करे तब करे। अच्छा बताओ? वाहन का मतलब समझते हो?" उन्होंने मुझे ग़ुस्साते पूछा तो मैंने कहा," नहीं सर!"

"तो समझ लो! जिस किसी पर भी सवारी की जाए वह वाहन! ऐसे में मोटर वाहन क़ानून सब पर लागू होता है। वैसे यार! दो हज़ार बीस में भी गधे पर चलना तुम जैसे देश के नागरिक को शोभा देता है क्या? हम चाँद पर जा पहुँचे और तुम गधे से नीचे नहीं उतर रहे हो? वह भी ऐसे में जब गाड़ियाँ बंदों के इंतज़ार में बेक़रार हों। अब तो लोन-शोन भी मज़े से मिल जाते हैं यार! कहो तो किसी बैंक वाले से बात करवाऊँ? मैं गाड़ियाँ फ़ाइनेंस भी करवाता हूँ। बड़ी गाड़ी नहीं तो स्कूटी ही ले लो और इस गधे को आज़ाद करो।"

"सर! कल को जो यमराज भैंसे पर सड़क पर दिखे गए तो??"

"तो क्या? उनका भी चालान होगा। वाहन इज़ वाहन। चाहे गधा हो चाहे भैंसा! ड्राइवर इज़ ड्राइवर! चाहे तुम हों चाहे...। सीनियर इंस्पैक्टर दातादीन किसीने नहीं डरता। देश के प्रेसीडेंट से भी नहीं। उनकी नज़रों में उल्लू ड्राइव करने वाले से लेकर कौवा ड्राइव करने वाले तक सब बराबर हैं," लग रहा था, इंस्पैक्टर साहब घर से लड़ कर आए हैं। बहुत हुआ मज़ाक! सो मैंने अब और बीच वाला रास्ता निकालने की सोची, “अगर आपकी नज़रों में गधे पर भी बैठना अपराध है तो...."

"मेरी ही नज़रों में नहीं। क़ानून की नज़रों में तो गधे को टच करना भी गधे के शोषण की श्रेणी में आता है। पता है नए मोटर वीइकल क़ानून के तहत बिन लाइसेंस गधा ड्राइव का कितना चालान है?"

"कितना सर?"

"पाँच हज़ार!"

"और घोड़े को बिन लाइसेंस ड्राइव करने पर छह हज़ार... भैंसे को बिन लाइसेंस ड्राइव करने पर आठ हज़ार...."

"सॉरी एसपी साहब! पहली बार गधे पर निकला हूँ तो....." मन ही मन उन्हें गालियाँ देते मैंने हाथ जोड़े तो वे इधर-उधर देखने के बाद बोले, “चलो, जल्दी करो। निकालो दो सौ! अभी पुराने रेट में ही चालान कर रहा हूँ। किसीको बताना मत!" और मैंने भी बिन इधर-उधर देखे चुपचाप जेब से दो सौ निकाले, उनके हाथ पर धरने के बाद कहा, “सर! अब गधे पर चढ़ा भी दो।"

"पहली बार गधा राइड कर रहे हो क्या?" उन्होंने मुस्कुराते हुए पूछा तो मैंने कहा, “जी हाँ सर!"

"देखो, नए मोटर वीइकल क़ानून को लेकर सरकार बहुत सख़्त है। उससे कहीं ज़्यादा इंस्पैक्टर दातादीन सर सख़्त हैं। ये तो तुम्हारी क़िस्मत अच्छी थी कि......अगली दफ़ा गधा ड्राइव करने से पहले गधा ड्राइविंग लाइसेंस बनवाकर ही गधा ड्राइव पर निकलना। सभी पुलिसवाले मेरे जैसे अकॉमोडेटिंग नहीं होते। बिना गधा ड्राइविंग के कल जो किसी और ने पकड़ लिया तो... " और वे मुझे झटके से गधे पर चढ़ा मुझे शाबाशी देते बोले, “सँभलकर डियर! सँभलकर! और हाँ! आगे कोई जो गधा ड्राइविंग काग़ज़ों के बारे पूछे तो कह देना इंस्पैक्टर दातादीन सर का बंदा हूँ। कोई तंग नहीं करेगा। करेगा तो तत्काल मुझे फोन कर देना, साले को ऐसे जूते मारूँगा कि.. कि.…!"

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