उपहार
कथा साहित्य | लघुकथा डॉ. विनीता राहुरीकर15 May 2019
आज चेरी का जन्मदिन था। रात बारह बजे ही नीता और राजीव ने केक काटकर जन्मदिन मनाने की शुरुआत कर दी थी। चेरी लेकिन सुबह से ही कुछ अनमनी सी लग रही थी।
राजीव के ऑफ़िस जाने के बाद नीता मोबाईल लेकर बैठ गई। यही तो समय होता है उसका अपना। फिर आज तो बहुत ख़ास दिन है। कल रात के चेरी के केक काटने के फोटो सोशल मीडिया पर डाले। फिर देर तक बधाइयों का सिलसिला चलता रहा और नीता लाईक गिनती और कमेंट पर धन्यवाद देती ख़ुश होती जा रही थी कि कितने सारे लोग चेरी को प्यार से दुआएँ दे रहे हैं। देश, विदेश तक से भी। उसका ध्यान भी नहीं गया कि चेरी अनमनी सी कितनी देर से उसके पास बैठी थी। बहुत देर बाद उसने मोबाईल पर आँखे गढ़ाए ही पूछा-
"क्या बात है बेटी। कुछ कहना है क्या?"
"माँ तुम मुझे जन्मदिन का कोई उपहार नहीं दोगी क्या?" चेरी ने कहा।
"अरे उपहार तो पहले ही दे दिया है। ड्रेस और नई सायकल दिला तो दी तुम्हें," नीता ने जवाब दिया। इतने में चार कमेंट आ चुके थे।
"मुझे कुछ और भी चाहिए," चेरी बोली।
"क्या चाहिए बोलो, पापा को बता देती हूँ शाम को लेते आएँगे," नीता लोगों को धन्यवाद देते हुए बोली।
"नहीं मुझे तुमसे कुछ चाहिए माँ। आज मेरे जन्मदिन पर तुम एक दिन अपना मोबाईल बन्द रखकर क्या मुझे अपना पूरा समय दे सकती हो?"
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sachindra rao 2021/01/22 10:37 PM
बहुत बढ़िया लिखा। आज सभी वर्चुअल संसार में डूब गए हैं