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यू.एस. आनन्द दोहे - 2

बदल गया अब आदमी, बदले उसके काम।
दिन में सौ-सौ बार वह, बदले अपना नाम॥

बची नहीं सद्भावना, बचा नहीं अब प्यार।
नैतिकता कुंठित हुई, मानवता बीमार॥

आज चतुर्दिक हो रही, मानवता की हार। 
दानवता की जय कहे, गाँव, शहर, अखबार॥

युग ऐसा अब आ गया, बिगड़ गया माहौल।
सड़कों पर जन घूमते, हाथ लिए पिस्तौल॥

दानवता के सामने, मानवता लाचार।
कैसी है यह बेबसी, कैसा यह व्यापार॥

बड़बोलों की भीड़ में, खड़ा संत चुपचाप। 
सहमत है हर बात पर, कह कर माई-बाप॥

चलना दूभर हो गया, सड़कों पर है आज।
मनमानी होने लगी, आया जंगल-राज॥

दहशत कुछ ऐसी बढ़ी, घटे हास परिहास । 
अर्थहीन-सी जिन्दगी, आए कुछ ना रास॥

भ्रष्टाचारी घूमते, यहाँ-वहाँ निःशंक। 
सज्जन दुबके फिर रहे, ऐसा है आतंक॥

वनफूलों की आजकल,फीकी पड़ी सुगन्ध।
साँसों में घुलने लगी, अब बारूदी गंध॥

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