वाल्मीकि
शायरी | ग़ज़ल क्षितिज जैन ’अनघ’1 Aug 2020 (अंक: 161, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
(221,221,221,22)
पर पीर को भी सदा है जिया जो
अनुभव दु खों का उसीने किया जो
वाल्मीकि भी बन सके कवि तभी जब
सुन थे सके क्रौंच की सिसकियाँ जो
वह श्लोक था आदि आया जिह्वा पर
काव्य प्रभो राम का फिर दिया जो
थाती कहाती अनश्वर अगर वह
जीवंत उसमें सदा राम माता सिया जो
सुन तू 'अनघ' कवि बने है वही नर
मन में दया भाव अपना लिया जो
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