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वह चाँद आने वाला है

सुबह का इंतज़ार,
शाम तक किया है।
चुपके से उठकर,
घर के दरवाज़े का
एक पलड़ा खोल दिया है,
कि वह चाँद आने वाला है।


अँधेरों ने मेरे घर को घेर रखा है,
कहीं आँखों को,
तो कहीं क़दमों को बाँध रखा है।
फिर भी लड़खड़ाकर सँभलकर,
एक चिराग़ जला रखा है,
कि वह चाँद आने वाला है।


वहीं वह एक क्षण था।
जिसमें मैंने और तुमने,
एक जीवन गुज़ारा था।
वर्षों बाद तुम फिर आने वाले हो,
इसलिए क़दमों को रोक रखा है,
कि वह चाँद आने वाला है।


वह काग़ज़ का पन्ना,
उसी तरह मोड़ कर रखा है
जिस तरह तुमने मुझे दिया था।
वह स्याही उसी तरह फैली हुई है,
जब लिखा था तुमने मेरा नाम।
आज उस पन्ने को मैंने टटोल रखा है,
कि वह चाँद आने वाला है।


आख़िरी बार तुम्हें याद है करुणा,
जब निकला था तुम्हारे घर से,
तुमने खिड़कियों से देखा था मुझे,
आँसुओं को पोंछते हुए।
आज मैंने खिड़कियों पर,
चेहरा लगा रखा है।
कि वह चाँद आने वाला है।


वह स्कूल का नलका सूना पड़ा है,
वह स्कूल की घंटी भी सूनी है,
जिसके बजते ही,
जब हम अपने-अपने 
घर को विदा हुए थे।
और अंतिम बार उस नलके को,
चलाकर तुमने पानी पिलाया था मुझे।
आज फिर इस रात में प्यासा बैठा हूँ,
कि वह चाँद आने वाला है।


वह टूटी हुई साइकिल की तीलियाँ,
तुम्हें याद है न करुणा।
जिसपे बैठकर स्कूल जाते वक़्त,
एक गड्ढे में गिर गये थे हम-तुम।
आज अँधेरों में 
उसी साइकिल के पास,
चुपचाप खड़ा हूँ।
कि वह चाँद आने वाला है।


उस रात हम-तुम 
रातभर जगे थे न करुणा,
जब मु़ड़कर मैंने जाना चाहा था।
तो तुमने कसकर 
मेरा हाथ पकड़ लिया था,
और कहा था- 
मुझे डर लग रहा है देव!
आज मैं रातभर डरते-डरते,
तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ,
कि वह चाँद आने वाला है।

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