वसंत
काव्य साहित्य | कविता रामदयाल रोहज9 Apr 2017
पीली सड़क पर नई नवेली गाड़ी दौड़ाते हुए
हॉर्न बजाते हुए
पहियों से झीना-झीना गर्द उड़ाते हुए
सालियों सी तितलियों पर चंचलता लुटाते हुए
प्रिया से मधुर मिलन को व्याकुल हो जाता है
वसंत चला आता है
काले-काले बक्सों से सरस संगीत सुनाते हुए
मन-मयूर को नचाते हुए
तेज़ लाईट जलाते हुए
कण-कण को हर्षाते हुए
भँवरों भी मधुर-मधुर बंशी बजाता है
वसंत चला आता है
पुरवाई के पलने में नव पल्लव को झुलाते हुए
वृद्ध ठूँठ को हरा बनाते हुए
प्रिया के मुँह से मायूसी हटाते हुए
घर-घर को महकाते हुए
दिल से प्रसून-प्रेम जमकर बरसाता है
वसंत चला आता है।
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