वसीयत
काव्य साहित्य | कविता पाराशर गौड़29 Aug 2007
जब...
मैं मरूँगा तो
मेरी लाश को
ना तो जलाये ना ही दफ़नाये
उसे तो.........
चौरहे पे लटकाये
ताकि.........
आती जाती जनता उसे
देख सके पहिचान सके
देखने के बाद ये कहे ...
ये... ये तो......
हम में से एक था
जो मर गया तर गया
अच्छा हुआ ।
लेकिन......
मुझे मरा घोषित न करे
और न किया जाय
भगोड़ा करार दे
हर राज्य में मेरा नाम दर्ज कराये
ताकि......
अगले आनेवाले चुनाव में
सियासतदान......
मेरे नाम पर राजनीति कर सके
उन्हें.........
किसी के मरने जीने से क्या
वो तो रोयेंगे गिड़गिड़ायेंगे
ताकि......
सहानभूति के वोट पा सकें
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