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वेदना का व्याख्याकार - 4

मूल कहानी – दि इंटरप्रेटर ऑफ मैलडीज़ (अंग्रेज़ी)
लेखिका : झुम्पा लाहिरी 
अनुवादक : विकास वर्मा

भाग- 4

पता लिखने के बाद मिस्टर कापसी ने काग़ज़ उन्हें दे दिया, पर ज्यों ही उन्होंने ऐसा किया उन्हें चिंता हुई कि शायद उन्होंने अपना नाम ग़लत लिख दिया है या फिर ग़लती से अपने पोस्टल कोड का नम्बर उल्टा लिख दिया है। वह इस सम्भावना से घबरा गए कि कहीं ख़त खो न जाए और फोटोग्राफ उन तक कभी पहुँचे ही ना, उड़ीसा में कहीं भटकता रहे, पास ही लेकिन आख़िरकार पहुँच से बाहर। उन्होंने सोचा कि एक बार फिर से काग़ज़ का वो पुर्ज़ा वापस माँग लें, सिर्फ़ यह पक्का करने के लिए कि उन्होंने अपना पता ठीक लिख दिया है, लेकिन मिसेज़ दास पहले ही उसे अपने बैग की भूलभुलैया में डाल चुकी थीं।

वे ढाई बजे कोणार्क पहुँच गए। बलुआ पत्थर से निर्मित यह मन्दिर रथ के आकार का था, जिसकी संरचना एक विशाल पिरामिड जैसी थी। यह जीवन के महान संचालक, सूर्य को समर्पित था जो प्रतिदिन आकाश में अपनी यात्रा के दौरान तीन तरफ़ से इस मन्दिर की इमारत से टकराता था। स्तम्भों के आधार के उत्तरी और दक्षिणी भाग में चौबीस बड़े पहिए उत्कीर्ण किए गए थे। इस सम्पूर्ण संरचना को सात घोड़ों का एक दल खींच रहा था, जिन्हें देखकर लगता था मानो वे तेज़ गति से स्वर्ग से गुज़र रहे हों। जब वे मन्दिर के पास पहुँचे, तो मिस्टर कापसी ने बताया कि इसका निर्माण मुस्लिम सेना के ख़िलाफ़ अपनी जीत की याद में गंग वंश के महान् शासक, नरसिंह देव प्रथम ने 1243 और 1255 ई. के बीच करवाया था, और यह बारह सौ शिल्पकारों की कोशिशों का नतीजा था।

"इसमें बताया गया है कि यह मन्दिर एक सौ सत्तर एकड़ ज़मीन पर फैला है," मिस्टर दास ने अपनी किताब से पढ़कर बताया।

"यह रेगिस्तान जैसा है," रॉनी ने मन्दिर के आगे हर तरफ़ फैली रेत को हैरानी से देखते हुए कहा।

"पहले यहाँ से एक मील उत्तर की तरफ़ चन्द्रभाग नदी बहती थी। वो अब सूख चुकी है," मिस्टर कापसी ने इंजन बन्द करते हुए बताया।

वे बाहर निकले और पहले सीढ़ियों के किनारे बने दो शेरों के साथ तस्वीरें खिंचवाते हुए, मन्दिर की तरफ़ जाने लगे। फिर मिस्टर कापसी उन्हें रथ के एक पहिए के पास ले गए जिसका व्यास नौ फीट था, किसी भी इंसान से काफ़ी ऊँचा।

"ये पहिए जीवन-चक्र का प्रतीक माने जा सकते हैं," मिस्टर दास ने पढ़ते हुए कहा। "’ये सृजन, संरक्षण और बोध की प्राप्ति की प्रक्रिया को दर्शाते हैं। वाह," उन्होंने किताब का पन्ना पलटा। "’प्रत्येक पहिया आठ मोटे और पतले आरों से विभाजित है, जो दिन को आठ बराबर भागों में बाँटते हैं। किनारों पर पक्षियों और जानवरों के डिज़ाइनों की नक्काशी की गई है, जबकि आरों पर बने गोलाकार भाग में स्त्रियों को विलासमय मुद्राओं में उत्कीर्ण किया गया है जो अधिकतर कामुक प्रकृति की हैं।"’

वह जिसके बारे में बता रहे थे, वे आलिंगनबद्ध नग्न शरीरों की असंख्य प्रतिमाएँ थीं, अलग-अलग मुद्राओं में प्यार करती हुईं, पुरुषों की गर्दनों से चिपकी स्त्रियाँ, जिनके घुटने शाश्वत रूप से अपने प्रेमी की जाँघों को घेरे हुए थे। इसके अलावा, वहाँ रोज़मर्रा की ज़िन्दगी के मिले-जुले दृश्य थे, शिकार और व्यापार के दृश्य, धनुष-बाण से हिरण को मारने के दृश्य और अपने हाथों में तलवार लिए कूच कर रहे योद्धाओं के दृश्य।

अब मन्दिर में प्रवेश करना तो सम्भव नहीं था क्योंकि सालों पहले यह मलबे से भर गया था, लेकिन धीरे-धीरे सब तरफ़ से इसे देखने पर उन्होंने बाहरी संरचना की तारीफ़ की, जैसा कि मिस्टर कापसी द्वारा वहाँ लाए गए सभी पर्यटक किया करते थे। मिस्टर दास तस्वीरें लेने के कारण पीछे रह गए थे। बच्चे नग्न आकृतियों की ओर इशारा कर आगे भाग गए। वे ख़ासकर ‘नागमिथुन’ के प्रति जिज्ञासु थे जो अर्द्ध-मानव, अर्द्ध-सर्प युग्म थे और जिनके बारे में मिस्टर कापसी ने बताया था कि वे समुद्र की अतल गहराइयों में रहते थे। मिस्टर कापसी को ख़ुशी हुई कि उन्हें मन्दिर पसन्द आया, ख़ासतौर से इसलिए कि मिसेज़ दास को यह आकर्षक लगा था। तीन-चार क़दम चलने के बाद हर बार वह रुक जाती थीं, उत्कीर्ण प्रेमियों को, और हाथियों के जुलूसों को, और मृदंग बजा रही निर्वस्त्र महिला-संगीतज्ञों को ख़ामोशी से निहारती हुईं।

हालाँकि मिस्टर कापसी अनगिनत बार मन्दिर आ चुके थे, लेकिन उन्होंने भी जब निर्वस्त्र स्त्रियों पर नज़र डाली तो अचानक उनके मन में यह विचार आया कि उन्होंने कभी अपनी ख़ुद की पत्नी को पूरी तरह नग्न नहीं देखा था। यहाँ तक कि जब वे प्यार भी करते थे तो भी वह अपने ब्लाउज़ के हुक लगाए रखती थी, और उसका पेटीकोट उसकी कमर के चारों ओर नाड़े से बँधा रहता था। उन्होंने कभी भी अपनी पत्नी के पैरों के पिछले हिस्से की तारीफ़ इस तरह नहीं की थी जैसे अब वह मिसेज़ दास की कर रहे थे, मानो वह सिर्फ़ उन्हें दिखाने के लिए ही चल रही थीं। उन्होंने बेशक़ अपने साथ टूर पर आने वाली अमेरिकी और यूरोपीय महिलाओं की बेपर्दा टाँगे पहले कई बार देखी थीं। लेकिन मिसेज़ दास अलग थीं। दूसरी महिलाओं के विपरीत, जिनकी दिलचस्पी केवल मन्दिर में थी, और जो अपनी आँखें गाइडबुक में गढ़ाए रहती थीं, या फिर कैमरे के लेंस के पीछे छिपी रहती थीं, मिसेज़ दास ने उनमें दिलचस्पी दिखाई थी।

मिस्टर कापसी उनके साथ अकेले रहने के लिए बेचैन हो रहे थे, ताकि वे अपनी निजी बातचीत जारी रख सकें, लेकिन फिर भी उनके नज़दीक जाने में उन्हें घबराहट हो रही थी। वह अपने धूप के चश्मे के पीछे खोई हुई-सी थीं, अपने पति की इस गुज़ारिश को नज़रन्दाज़ करती हुईं कि वह एक और तस्वीर के लिए पोज़ दें, और अपने बच्चों के पास से ऐसे गुज़र गईं जैसे वे अजनबी हों। इस बात के डर से कि कहीं वह उन्हें परेशान न कर दें, मिस्टर कापसी प्रकाश के देवता, सूर्य के तीन आदमक़द कांस्य अवतारों की सुन्दरता को निहारने के लिए, जैसा कि वह हमेशा करते थे, आगे बढ़ गए। मन्दिर के अग्रभाग में प्रत्येक अवतार अपने-अपने स्थान पर खड़ा था, सुबह, दोपहर और शाम को सूर्य का अभिनन्दन करने के लिए। उनके सिर पर अलंकृत मुकुट थे, उनकी निस्तेज, लम्बी आँखें बंद थीं, उनके निर्वस्त्र सीनों पर उत्कीर्ण श्रंखलाएँ और रक्षा-कवच बँधे थे। उनके धूसर-हरे चरणों पर गुड़हल की पंखुड़ियाँ बिखरी हुई थीं जो पहले आए लोगों द्वारा अर्पित की गई थीं। मन्दिर की उत्तरी दीवार पर स्थित अंतिम प्रतिमा मिस्टर कापसी को सबसे ज़्यादा पसन्द थी। इस सूर्य के चेहरे पर थकान की अभिव्यक्ति थी, दिन भर की मेहनत से उपजी थकावट, और वह पैरों को मोड़कर घोड़े पर बैठा था। यहाँ तक कि उसके घोड़े की आँखें भी अलसाई हुई थीं। उसके शरीर के चारों ओर दो-दो स्त्रियों की छोटी प्रतिमाएँ थीं, जिनके नितम्ब एक ओर निकले हुए थे।

"यह कौन है," मिसेज़ दास ने पूछा। यह देखकर मिस्टर कापसी को हैरानी हुई कि वह उनके साथ ही खड़ी थीं।

"यह अस्ताचल-सूर्य है," मिस्टर कापसी ने बताया। "डूबता सूरज।"

"यानी कुछेक घंटों में सूरज यहाँ डूब जाएगा?" उन्होंने अपने चौकोर हील वाले जूते से एक पैर बाहर निकाला और अपने पैर के पंजे से दूसरे पैर का पिछला हिस्सा खुजलाने लगीं।

"जी हाँ, यह सही है।"

उन्होंने एक पल के लिए अपना धूप का चश्मा हटाया, फिर वापस उसे अपनी जगह पर रख लिया। "नीट।"

मिस्टर कापसी को निश्चित तौर पर नहीं पता था कि इस शब्द (नीट) का क्या अर्थ है, लेकिन उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि यह एक सकारात्मक जवाब था। उन्होंने उम्मीद की कि मिसेज़ दास सूर्य की शक्ति, उसके सौन्दर्य को समझ गई हैं। शायद अपने ख़तों में वे इस पर आगे चर्चा करेंगे। वह उन्हें कई सारी बातें बताएँगे, हिन्दुस्तान के बारे में और वह उन्हें अमेरिका के बारे में कई क़िस्से सुनाएँगी। अपने अलग अंदाज़ में ख़तों के जरिए होने वाली यह बातचीत उनके सपने को पूरा करेगी, राष्ट्रों के बीच दुभाषिए के तौर पर काम करने का सपना। उन्होंने उनके स्ट्रॉ बैग की तरफ़ देखा, इस बात से ख़ुश होते हुए कि इसकी चीज़ों के बीच उनका पता भी आराम से रखा हुआ है। जब उन्होंने कल्पना की कि मिसेज़ दास हज़ारों मील दूर जा चुकी हैं तो उनका दिल बैठ गया, इस हद तक कि उनके अन्दर एक तीव्र इच्छा जगी कि वह उन्हें अपनी बाहों में भर लें, अपने इष्ट देव सूर्य की मौजूदगी में, चाहे एक पल के लिए ही, उन्हें आगोश में लेकर उनके साथ इस लमहे को रोक लें। लेकिन मिसेज़ दास ने पहले ही चलना शुरू कर दिया था।

"आप अमेरिका कब वापस जा रही हैं?" उन्होंने शांत दिखने की कोशिश करते हुए पूछा।

"दस दिनों में।"

उन्होंने गिनती की: एक हफ़्ता सेटल होने में, एक हफ़्ता तस्वीरें तैयार करने में, कुछ दिन ख़त लिखने में, दो हफ़्ते हवाई जहाज़ से ख़त हिन्दुस्तान पहुँचने में। उनकी गिनती के हिसाब से, किन्हीं कारणों से होने वाली देरी को जोड़ते हुए, मिसेज़ दास का खत उन तक पहुँचने में लगभग छ: हफ़्ते का वक़्त लग जाएगा।

परिवार ख़ामोश बैठा था, जब मिस्टर कापसी लगभग साढ़े चार बजे उन्हें वापस होटल सैंडी विला ले आए। बच्चे रथ के पहियों के छोटे-छोटे ग्रेनाइट- संस्करण निशानी के तौर पर साथ ले आये थे, और अपने हाथों पर इन्हें गोल-गोल घुमा रहे थे। मिस्टर दास अभी भी अपनी किताब पढ़ रहे थे। मिसेज़ दास ने टीना के बालों को अपने ब्रुश से सुलझाया और उसकी दो छोटी-छोटी चोटियाँ बना दीं।

मिस्टर कापसी को यह सोच कर घबराहट होने लगी कि वह उन्हें वापस छोड़ने जा रहे हैं। वह इस बात के लिए अभी तैयार नहीं थे कि मिसेज़ दास के ख़त के लिए छ: सप्ताह लम्बा इंतज़ार करें। जब उन्होंने रियरव्यू मिरर में उनपर नज़र डाली तो वह रबड़-बैंड से टीना के बाल बाँध रही थीं, और तब उन्होंने सोचा कि किस तरह इस टूर को थोड़ा और लम्बा बना दें। आमतौर पर वह शॉर्टकट लेकर पुरी वापस आ जाते थे ताकि जल्दी घर लौट जाएँ, चन्दन की ख़ुशबू वाले साबुन से अपने पैर और हाथ धोएँ और मज़े से एक प्याली चाय के साथ शाम का अख़बार पढ़ें, जो उनकी पत्नी ख़ामोशी से उन्हें दे जाती थी। लेकिन अब उस ख़ामोशी का ख़याल उन्हें परेशान कर रहा था, वह ख़ामोशी जिसे एक लम्बे समय से उन्होंने स्वीकार कर लिया था। इसीलिए, तब उन्होंने उदयगिरि और खंडगिरि की पहाड़ियों को देखने का सुझाव दिया, जहाँ एक संकरी घाटी में कई सारे मठ-आवास ज़मीन को काटकर आमने-सामने बनाए गए थे। वह कुछ मील की दूरी पर थे लेकिन काफ़ी दर्शनीय थे, मिस्टर कापसी ने बताया।

"हाँ, इस किताब में इसके बारे में कुछ बताया गया है," मिस्टर दास ने कहा। "किसी जैन राजा ने इसे बनवाया था या ऐसा ही कुछ।"

"तो फिर चलें?" मिस्टर कापसी ने पूछा। सड़क के एक मोड़ पर वह रुक गए। "यह बाईं तरफ़ है।"

मिस्टर दास मिसेज़ दास को देखने के लिए पीछे मुड़े। दोनों ने कन्धे उचका दिए।

"लेफ़्ट, लेफ़्ट," बच्चे चिल्लाए।

मिस्टर कापसी ने गाड़ी मोड़ ली, ख़ुशी से लगभग बेसुध-से होते हुए। उन्हें नहीं पता था कि वहाँ पहुँचने पर वह मिसेज़ दास के साथ क्या करेंगे या उनसे क्या कहेंगे। शायद उन्हें बताएँगे कि उनकी मुस्कान कितनी खूबसूरत है। शायद उनकी स्ट्रॉबेरी शर्ट की तारीफ़ करेंगे जो उन्हें बेहद आकर्षक लग रही थी। शायद, जब मिस्टर दास तस्वीरें लेने में व्यस्त होंगे, वह मिसेज़ दास का हाथ अपने हाथ मे ले लेंगे।

उन्हें इस बात की चिंता नहीं करनी पड़ी। जब वे पहाड़ी पर पहुँचे, जो घने पेड़ों वाले एक ढलवा रास्ते से बंटी थी, तो मिसेज़ दास ने गाड़ी से बाहर आने से मना कर दिया। पूरे रास्ते कई सारे बन्दर पत्थरों पर और पेड़ों की डाल पर बैठे हुए थे। उनकी टाँगे आगे की ओर खिंची हुई थीं और कन्धों तक आ रही थीं, और उन्होंने अपने हाथ अपने घुटनों पर रखे हुए थे।

"मेरे पैर थक गए हैं," उन्होंने अपनी सीट पर नीचे की ओर धँसते हुए कहा। "मैं यहीं रुकूँगी।"

"तुम्हें इन बेकार के जूतों को पहनने की क्या पड़ी थी?" मिस्टर दास बोले। "तुम तस्वीरों में साथ नहीं आ पाओगी।"

"समझ लो मैं वहाँ हूँ।"

"लेकिन हम इन तस्वीरों में से किसी एक को क्रिसमस कार्ड के तौर पर् इस्तेमाल कर सकते थे। सन टेम्पल में हमनें पाँचों की एक साथ कोई तस्वीर नहीं ली। मिस्टर कापसी हमारी एक तस्वीर ले सकते हैं।"

"मुझे नहीं आना। वैसे भी, मुझे इन बन्दरों से दहशत होती है।"

"लेकिन ये कुछ नुकसान नहीं पहुँचाएँगे," मिस्टर दास ने कहा। वह मिस्टर कापसी की ओर मुड़े, "है ना?"

"ये ख़तरनाक कम और भूखे ज़्यादा हैं।" मिस्टर कापसी ने बताया। "आप खाना दिखाकर इन्हें उकसाइए मत, और ये आपसे कुछ नहीं कहेंगे।"

मिस्टर दास बच्चों के साथ घाटी में ऊपर की ओर चढ़ने लगे। लड़के उनके अगल-बगल थे, छोटी बच्ची उनके कन्धों पर थी। मिस्टर कापसी उन्हें देखते रहे जब वे एक जापानी पुरुष और महिला के पास से गुज़रे जो उनके अलावा वहाँ मौजूद एकमात्र सैलानी थे। वे एक आखिरी फोटोग्राफ के लिए रुके थे, और फिर पास ही खड़ी एक कार में बैठकर चले गए। जैसे ही कार आँखों से ओझल हुई, कुछ बन्दर धीमी हू हू की आवाज़ निकालते हुए चिल्लाने लगे और फिर अपने चपटे काले हाथों और पैरों के सहारे ऊपर रास्ते पर जाने लगे। एक जगह उनके एक समूह ने मिस्टर दास और बच्चों के चारों ओर एक छोटा घेरा बना लिया। टीना ख़ुशी से चिल्लाने लगी। रॉनी अपने पापा के चारों ओर गोल-गोल भागने लगा। बॉबी नीचे झुका और उसने ज़मीन से एक मोटी डंडी उठाई। जब उसने इसे आगे बढ़ाया तो एक बन्दर उसके नज़दीक आया और डंडी उससे छीन ली, फिर कुछ देर तक उसे ज़मीन पर मारता रहा।

"मैं उनके पास जाता हूँ," मिस्टर कापसी ने अपनी तरफ़ का दरवाज़ा खोलते हुए कहा। "गुफाओं के बारे में ऐसी बहुत-सी बातें हैं जो बताई जा सकती हैं।"

"नहीं। एक मिनट रुकिए," मिसेज़ दास बोली। वह पिछली सीट से बाहर आईं और मिस्टर कापसी की बगल वाली सीट में आकर बैठ गईं। "राज के पास वैसे भी उसकी वो फ़ालतू किताब है ही।" कार के शीशे में से, मिसेज़ दास और मिस्टर कापसी एक साथ देखते रहे कि कैसे बॉबी और बन्दर कभी डंडी एक-दूसरे को दे रहे थे और कभी छीन रहे थे।

"काफ़ी बहादुर बच्चा है," मिस्टर कापसी ने तारीफ़ की।

"इसमें कोई बहुत हैरानी की बात नहीं है," मिसेज़ दास बोलीं।

"नहीं है?"

"वो उसका नहीं है।"

"क्या मतलब?"

"राज का। वो राज का बेटा नहीं है।"

मिस्टर कापसी को अपनी खाल में एक काँटा-सा चुभता महसूस हुआ। उन्होंने कमल के तेल से बने बाम की छोटी डिब्बी, जो वह हमेशा अपने साथ रखते थे, निकालने के लिए अपनी शर्ट की जेब में हाथ डाला, और अपने माथे पर तीन जगह उसे लगा लिया। उन्हें पता था कि मिसेज़ दास उन्हें देख रही हैं, लेकिन वह उन्हें देखने के लिए मुड़े नहीं। इसके बदले वह मिस्टर दास और बच्ची को देखने लगे जिनकी आकृतियाँ छोटी होती जा रही थीं, जैसे-जैसे वे ढलवा रास्ते पर ऊपर चढ़ते जा रहे थे, बीच-बीच में तस्वीर खींचने के लिए रुकते हुए, बन्दरों की बढ़ती तादाद से घिरे हुए।

- क्रमशः

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