अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

विनती

कल जोड़ प्रथम नमन तुमको करते आदि शक्ति।
संसार का मूल आधार है तू और तुझसे ही नियति।
स्वच्छ कर मन करे यज्ञाहुति में तुमको अर्पण।
पावन अग्नि में निर्मल करे हृदय का अंग अंग।
 
तुम आदि, तुम ही अनादि।
तुम शून्य, तुम ही शिखर।
तुम शाश्वत, तुम ही अचल।
तुम धरा, तुम ही अम्बर।
 
पात्र भी तुम ही, तुम ही जल।
चेतन भी तुम ही, तुम ही जड़।
शांत भी तुम ही, तुम ही विभ्रांत।
तप भी तुम ही, तुम ही वरदान।
 
सत्य तुमसे, तुमसे ही कल्पित।
व्यथा में तुम, तुम ही प्रमुदित।
शेष भी तुम, अवशेष भी तुम।
तिलक भी तुम, कलंक भी तुम।
 
तुम ही श्वास, तुम ही अंत।
तुम ही इति, तुम ही अनंत।
तुमसे पतित, तुमसे ही पावन।
तुमसे राम, तुमसे ही रावण।
 
अतीत की स्मृति तुम, भविष्य की व्यग्रता तुम।
उम्मीद की द्युति तुम, त्रास का अंधकार तुम।
पाप भी तुम, तुम ही पुण्य ग्रंथ के छंद।
जीवन का सार तुम, तुम ही मृत्यु का तांडव।
 
वंदना है तुझसे कि मेरी आत्मा को बल दे।
मेरी कलम को शक्ति, अक्षर को तल दे।
जो हो चूक, अज्ञान समझ क्षमा दान दे।
आशीष अपना बना, ज्ञान का प्रसाद दे।
 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

नज़्म

कहानी

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं