अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

विनोद बावफ़ा है

"अक़्ल को तन्क़ीद से फ़ुर्सत नहीं
इश्क़ पर आमाल की बुनियाद रख"

हाल ही में एक फ़िल्म आयी है चमनबहार, जिसमें नायक अपनी जी-तोड़ मेहनत से की कमायी गयी अल्प पूँजी पर अपने मन के उद्‌गार लिखते हुए दस-दस के नोटों पर अपनी प्रेमिका के प्रति अपनी भड़ास निकालते हुए लिखता है कि फ़िल्म की नायिका बेवफ़ा है। मगर तकादे की रुसवाई से आजिज़ आकर वो नोटों का बंडल तकादेदार को सौंप देता है। बात पुलिस तक पहुँच जाती है। नायक पिटता है, तब नायिका को पता चलता है कि नायक सही आदमी है। ज़ाहिर है नायक की पिटाई से जनता को हास्य -विनोद नहीं हुआ इसीलिये चमन बहार नहीं चली। लेकिन इधर विनोद ने कोरोना काल में लोगों का ख़ूब विनोद किया, बड़ी-बड़ी सोशल साइट्स और विश्वस्तरीय कम्पनियाँ कुछ देर के लिये विनोद हो गयीं। ये देश ऐसा ही है जहाँ सौम्य, साधारण चीज़ों पर लोगबाग फ़िदा हो जाते हैं जैसे कुछ बरस पहले एक दिलजले ने दस रुपये के नोट पर मिस गुप्ता को बेवफ़ा क्या मान लिया, देश के लाखों लोगों के भावनाएँ उस गुमनाम दिलजले आशिक़ के साथ जुड़ गयीं और लोगों ने प्रार्थनाएँ कीं उस गुमनाम मगर सच्चे आशिक़ की कि मिस गुप्ता से सारे गिले-शिकवे दूर हो जाएँ।

ऐसे ही आशिक़ों के लिये किसी ने कहा है -

"जल जा, जल जा इश्क़ में जल जा 
जले वो कुंदन होय
जलती राख लगा ले माथे 
लगे तो चन्दन होय"

सोशल मीडिया है ऐसा। कोरोना में अपनी घटती मीडिया अटेंशन से परेशान एक फ़िल्मी सितारे की पीआर एजेंसी भी उसे कोरोना संक्रमित होने पर उतना फुटेज नहीं दिला पायी जितना सिर्फ़ विनोद लिखकर कोई लोकप्रिय हो गया। सुना है विनोद शब्द ने उन्हें काफ़ी त्रास और तनाव दिया है। जवानी में विनोद खन्ना ने और अब बुढ़ापे में इतनी बड़ी मीडिया और पीआर एजेंसी की सेवाएँ लेने के बाद सिर्फ़ तीन अक्षर विनोद लिखकर कोई लाइमलाइट चुरा ले गया; बेचारे बहुत परेशान हैं। यही हाल अपने पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान का भी है। वहाँ सरकार की पीआर एजेंसी ने उसको सलाह दे दी कि ये सही वक़्त है कि इस्लामिक मुल्कों की यूनियन का सरबरा बना जाए। उसके सिर पर तुर्की औऱ मलेशिया का हाथ है तो वो सऊदी अरब को चुनौती दे सकता है। ऐसे फैंटम टाइप बयान मियां नियाजी की सरकार में शेख रसीद मिनिस्टर दिया करते रहते हैं। शेख रसीद को भी ख़ुदा ने फ़ुर्सत में बनाया है। उनके बयान सुनकर तो आइंस्टीन की आत्मा भी अपनी मेधा पर अफ़सोस कर रही होगी। बकौल शेख रसीद पाकिस्तान ने एक ऐसा बम ईजाद किया है जो वो हिंदुस्तान पर गिराएँगे तो वो चुन-चुन कर सभी को मारेगा, लेकिन एक ख़ास धर्म के लोगों को छोड़ देगा। भारत में ऐसे चुटकुलों पर अब कोई नहीं हँसता। हमारे पास मनोरंजन की बेहतर सूचनाएँ मौजदू हैं। जैसे कि एक बहुत बड़े दैनिक अख़बार ने अभी ख़बर दी है कि महेंन्द्र सिंह धोनी पिछले वर्ष का सेमीफ़ाइनल भारत को न जिता पाने पर बाथरूम के अंदर मुँह में कपड़ा ठूँस कर रोये थे ताकि आवाज़ बाहर ना जा सके। इस महान पत्रकारिता की न्यूज़ के बाद कुछ लोग इस तथ्य पर संविधान विशेषज्ञों से राय मशविरा कर रहे हैं कि क्या अख़बार को पब्लिक निकाय माना जा सकता है और आरटीआई डालकर उस मीडिया समूह से क्या निम्नलिखित प्रश्न पूछे जा सकते हैं –

क– धोनी के मुँह में कपड़ा डालकर रोने वाले कपड़े का रंग कौन सा था?
ख– क्या वो कपड़ा जर्सी की तरह स्पॉन्सर्ड था, या जर्सी के साथ रोने के लिये उसी रंग का कपड़ा उपलब्ध कराया गया था?
ग– क्या जिस कम्पनी का कपड़ा था, भविष्य में धोनी उसका विज्ञापन करेंगे और लोगों को आश्वासन देंगे कि मैच हारने के बाद मुँह में कपड़ा डाल कर रोने के लिये ये सबसे मुफ़ीद ब्रांड है?
घ– सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न कि जो कपड़ा वो मुँह में ठूँस कर रोये थे, भविष्य में उसकी नीलामी का बेस प्राइस कितना होगा?

टीवी चैनल के पत्रकार जिस तरह कोरोना संकट में एडमिट हुए एक अभिनेता के बेड के नीचे अस्पताल में जाकर रिपोर्टिंग का अभ्यास कर रहा था। उसी तरह टीवी चैनल का रिपोर्टर ड्रेसिंग रूम के किसी बाथरूम में मुँह में कपड़ा डाल-डालकर रोने का प्रयास करेगा और लोगों को बताएगा कि इतने इंच का कपड़ा मुँह में डाल कर रोने से, बतौर खिलाड़ी, आपका दुख कम हो जायेगा। क्रिकेट प्रेमी भले ही किसी के जानबूझकर घटिया खेलने पर बरसों आँसू बहाते रहें।

उम्मीद है जल्द ही शास्त्री इस मुँह में कपड़ा डाल कर रोने के धोनी के काम को "आउटस्टैंडिंग गेम प्लान" बताते हुए भारत के क्रिकेट प्रेमियों को विश्व कप के सेमीफ़ाइनल के एक मैच में चार विकेटकीपर खिलाने की महानतम रणनीतियों पर वक्तव्य देकर भारत के क्रिकेट प्रेमियों को लाभान्वित करेंगे। वैसे रोने के लिये मुँह में कपड़ा ठूँसना ज़रूरी नहीं, एक और सेमीफ़ाइनल हुआ था विश्वकप का 1996 में, जिसमें दर्शकों के हुड़दंग की वज़ह से टीम को न जिता पाने वाले विनोद काम्बली भी फफक-फफक कर और बिलख-बिलख कर रोये थे, देश के सामने, मैदान पर, तब उनके साथ देश के लाखों क्रिकेट प्रेमी भी साथ साथ रोये थे उस हार पर।

लेकिन तब पीआर एजेंसीज़ नहीं थीं जो ये तय करती थीं कि कौन सा सेलेब्रिटी कितनी देर तक, किस लोकेशन पर कितना रोयेगा और मीडिया ब्रीफ़िंग में उसके रोने की सूचना सही ढंग से दी जा सके। ये मीडिया अटेंशन बहुत बुरी चीज़ है, ब्रिटेन में राजपरिवार की बहू अपना राजपाट छोड़कर कैनेडा में मॉडलिंग करना चाहती हैं। बतौर क्वीन की बहू उनको उतना फुटेज नहीं मिल पाता। सदैव मीडिया में रहने वाले नेपोटिज़्म के झंडाबरदार आजकल निर्वासन में हैं और मामी से दूर हो चुके महोदय ने कुछ दिन पहले भी मीडिया में एक ख़बर भिजवाई थी कि वे एक युवा सिनेस्टार की मृत्य से बेहद आहत हैं और बार-बार, ज़ार-ज़ार रोते हैं। 

रोना भी एक अदा है पाकिस्तान के यू-टर्न कहे जाने वाले प्राइम मिनिस्टर भी आजकल रोनी सूरत बनाये फिरते हैं। जिस सऊदी अरब के लिये वो अपनी जान छिड़कने को आमादा हैं और समूचे पाकिस्तान को सऊदी अरब का दोस्त कहा है, लेकिन सऊदी अरब ने साफ़ कर दिया है कि हम जिनको नौकरी पर रखते हैं, उनसे दोस्ती नहीं करते। दोस्ती बराबर के लोगों से होती है, उनसे नहीं जो उन्हीं की ख़ैरात पर ज़िंदा हैं। पाकिस्तान ने हाथ फैलाया, सऊदी ने 3 अरब डॉलर डाल दिया। पाकिस्तान ने आँखें दिखाईं तो सऊदी ने अपने एक करोड़ डॉलर तुरन्त माँग लिये। माँगे-ताँगे से अपनी अर्थव्यवस्था चलाने वाले पाकिस्तान ने तुरंत एक करोड़ डॉलर चीन से माँगकर सऊदी को दे दिया। लेकिन सउदी ने तेल की सप्लाई रोक दी और नक़द लेकर ही तेल देने को कहा है। पाकिस्तान ने अपने नए दोस्त मलेशिया की शरण ली, मलेशिया पहले से ही रो रहा है कि भारत ने साल भर से उससे पाम आयल ख़रीदना बन्द कर दिया है महातिर मोहम्मद की ऊलजुलूल बयानबाज़ी के सबब। 94 साल के महातिर मोहम्मद मलेशिया की अर्थव्यवस्था की पनौती बने बैठे हैं। ख़ैर नियाजी निराश नहीं हुए उन्होंने तुरंत अपने नए रिंगमास्टर तुर्की से मदद माँगी। लेकिन भारत विरोधी बयानों के कारण तुर्की का बहिष्कार करते हुए पिछले वर्ष डेढ़ लाख भारतीयों ने अपनी तुर्की यात्रा रदद् कर दी। तुर्की की भी हालत ख़स्ता है, वो दुनिया की दसवीं सबसे बड़ी इकोनॉमी बनने का ख़्वाब तो देख रहे हैं लेकिन सिर्फ डेढ़ लाख भारतीयों के यात्रा बहिष्कार से वहाँ की अर्थव्यवस्था हिल गयी है। डिप्लोमेसी के जानकार बताते हैं कि तुर्की ने पाकिस्तान को आश्वासन दिया है कि जब भारत के लोग तुर्की की यात्रा शुरू करेंगे तब हालात सामान्य होंगे। उससे उनकी अर्थव्यवस्था सुधरेगी, तब वो कुछ पैसे पाकिस्तान को दे देंगे ताकि वो भारत को परेशान कर सके। यही है इकोनॉमी का गोल चक्कर ।

पाकिस्तान अब सऊदी अरब से गिड़गिड़ा रहा है कि हमें तेल देना बंद मत करो वरना हमारी इकोनॉमी का तेल निकल जायेगा। आप जैसा कहेंगे हम वैसा ही करेंगे। दुष्यंत साहब ने इसी हालात पर फ़रमाया था कि 

"डांट खाकर मौलवी से अहले मकतब
फिर वही आयत दोहराने लगे हैं 
वो सलीबों के क़रीब आये तो 
हमको क़ायदे क़ानून समझाने लगे हैं"

इसी सब के बीच तुर्की की फ़र्स्ट लेडी से एक  हिंदुस्तानी अभिनेता की मुलाक़ात पर सोशल मीडिया पर काफ़ी हास्य-विनोद हो रहा है। उन अभिनेता साहब की घर की एक लेडी ने बताया था कि उन्हें इस देश में डर लगने लगा था। उम्मीद है अब वो निडर होकर कहीं भी आ जा सकते हैं। इसी निडरता में वो नेटीज़न्स के निशाने पर आ गए।

एक ऐसे दौर में जब एक भारतीय फ़िल्म ने डिसलाइक होने का रिकॉर्ड बनाया है, तब उनकी मुलाक़ात की टाइमिंग को परफ़ेक्ट कहना शायद मुफ़ीद नहीं होगा, जबकि उनकी फ़िल्म भी आने वाली है। उनकी इस परफ़ेक्ट मुलाक़ात की टाइमिंग पर कई नेटीज़नों का हास्य -विनोद हो रहा है। इसी बीच डिस्लाइक में महारत रखने वाला एक बन्दा गा रहा है -

"यारों हँसों बना रखी है क्या ये सूरत रोनी "।

कुछ उसे हिला हुआ, प्रचार का भूखा कहती है, लेकिन तमाम नेटीज़न प्यार से कहते पाए गए हैं –

"विनोद बावफ़ा है"।

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'हैप्पी बर्थ डे'
|

"बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का …

60 साल का नौजवान
|

रामावतर और मैं लगभग एक ही उम्र के थे। मैंने…

 (ब)जट : यमला पगला दीवाना
|

प्रतिवर्ष संसद में आम बजट पेश किया जाता…

 एनजीओ का शौक़
|

इस समय दीन-दुनिया में एक शौक़ चल रहा है,…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

लघुकथा

बाल साहित्य कविता

कहानी

सिनेमा चर्चा

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं